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कौन होगा उत्तर प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष? जल्द होगा चुनाव, जानें मैदान में कौन है आगे

यूपी बीजेपी प्रदेश संगठन के चुनाव के बाद बड़े बदलाव करने जा रही है. सरकार और संगठन में ऐसे क्षेत्रों और जातियों को प्रतिनिधित्व मिलेगा, जिनका वोटिंग समीकरण महत्वपूर्ण है.

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Edited By: Reepu Kumari
UP BJP President Election
Courtesy: Pinterest

उत्तर प्रदेश BJP के 98 में 84 जिला अध्यक्षों के चुनाव के बाद अब जल्दी ही प्रदेश अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया पूरी हो सकती है. उत्तर प्रदेश संगठन चुनाव के बाद यूपी बीजेपी अपने संगठन और सरकार में बड़े फेरबदल की योजना बना रही है. रणनीति का मकसद उन जातियों और क्षेत्रों को प्रतिनिधित्व देना है, जिनके वोटिंग पैटर्न चुनाव परिणाम को प्रभावित करते हैं. बीते लोकसभा चुनाव में कुछ ओबीसी और पासी-जाटव वोट सपा के पाले में चले गए थे.

अब पार्टी अपने संगठन और कैबिनेट विस्तार में इस समीकरण को संतुलित करने की तैयारी में है. यह बदलाव विधानसभा चुनाव से पहले अंतिम कैबिनेट फेरबदल के रूप में हो सकता है.

स्ट्रेटेजिक प्रतिनिधित्व

यूपी बीजेपी चुनावी रणनीति के तहत अवध, प्रतापगढ़-प्रयागराज, अम्बेडकरनगर, ब्रज और काशी क्षेत्रों में जातीय समीकरण को संतुलित करने की योजना बना रही है. पासी, कुर्मी, सैनी-मौर्या, शाक्य और बिंद जैसे समुदायों का प्रतिनिधित्व बढ़ाया जा सकता है. यह रणनीति गैर यादव ओबीसी वोटरों को सपा की ओर जाने से रोकने के लिए बनाई जा रही है.

सोशल इंजीनियरिंग का महत्व

बीते लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने जाटव उम्मीदवार खड़े कर वोट शेयर में बढ़त बनाई थी. इस अनुभव को ध्यान में रखते हुए बीजेपी अपने संगठन में ओबीसी और गैर यादव वर्गों के प्रतिनिधित्व पर फोकस कर रही है. रणनीति का मकसद 2027 विधानसभा चुनाव में सपा के कोर वोटर समीकरण को चुनौती देना है.

प्रदेश अध्यक्ष का चयन

गैर यादव ओबीसी वोटर को जोड़ने के लिए प्रदेश अध्यक्ष पद पर कुर्मी-लोध या निषाद समुदाय का प्रतिनिधित्व संभव है. यह कदम पार्टी के लिए संगठन में समावेशिता और चुनावी फायदे दोनों सुनिश्चित करेगा. संगठन चुनाव के बाद यह निर्णय अंतिम रूप ले सकता है.

कैबिनेट विस्तार में बदलाव

योगी सरकार के कैबिनेट विस्तार में पासी-कुर्मी वर्ग को अधिक प्रतिनिधित्व देने की संभावना है. यह विधानसभा चुनाव से पहले अंतिम कैबिनेट फेरबदल माना जा रहा है. सभी वर्गों और क्षेत्रों की नुमाइंदगी सुनिश्चित करने के लिए यह बदलाव जरूरी है.

चुनावी तैयारी की दिशा

बीजेपी का लक्ष्य सपा द्वारा पिछले चुनाव में हासिल कोर वोटर संतुलन को तोड़ना है. संगठन चुनाव और कैबिनेट फेरबदल के बाद पार्टी सामाजिक और क्षेत्रीय समीकरणों को ध्यान में रखते हुए विधानसभा चुनाव की रणनीति को और मजबूत करेगी. यह कदम आगामी चुनाव में वोट बैंक बढ़ाने में महत्वपूर्ण साबित हो सकता है.

यूपी बीजेपी अध्यक्ष चुनाव के 6 अहम फैक्टर

सामाजिक संतुलन: वर्तमान पावर-स्ट्रक्चर में सीएम योगी ठाकुर (राजपूत), डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक (ब्राह्मण) और केशव प्रसाद मौर्य (ओबीसी) हैं. अध्यक्ष पद पर ओबीसी नेता जोड़ने से पिछड़े समाज को संगठन में प्रमुख भूमिका का संदेश जाएगा.

ब्राह्मण नाराजगी: 2017 के बाद कई चुनावों में ब्राह्मणों में नाराजगी की चर्चा रही है. ब्राह्मण अध्यक्ष (दिनेश शर्मा या हरीश द्विवेदी) से पार्टी यह संदेश दे सकती है कि परंपरागत सवर्ण वोटरों की उपेक्षा नहीं हो रही.

पारंपरिक वोट बैंक को संदेश: ब्राह्मण अध्यक्ष नियुक्त होने से पश्चिम, अवध और पूर्वांचल के शहरी–अर्धशहरी इलाकों में ब्राह्मण-वैश्य-कायस्थ वोटरों को “सम्मानजनक साझेदारी” का संकेत मिलेगा.

दलित वोट बैंक की चुनौती: सपा के PDA और बसपा के दलित-मुस्लिम-ओबीसी गठबंधन की काट के लिए बीजेपी दलित नेता को अध्यक्ष बनाने पर भी गंभीरता से विचार कर रही है.

एससी वोट और बसपा की जमीन पर सेंध: कठेरिया या सोनकर जैसे दलित नेता अध्यक्ष बने तो बसपा की पारंपरिक जमीन (जाटव + अन्य दलित) और एससी रिज़र्व सीटों पर बीजेपी की पकड़ मज़बूत होगी.

तीन स्तंभों का समीकरण: चुनाव से पहले यह सामाजिक समीकरण भी महत्वपूर्ण है – मुख्यमंत्री राजपूत, एक उपमुख्यमंत्री ब्राह्मण, दूसरा उपमुख्यमंत्री ओबीसी और संगठन में दलित अध्यक्ष. यह तीन बड़े सामाजिक समूहों का संतुलित प्रतिनिधित्व दर्शाता है.