Allahabad High Court on Live-in Relation: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में लिव-इन रिलेशनशिप को लेकर एक बड़ी टिप्पणी की है. हाईकोर्ट ने माना है कि हिंदू कानून के अनुसार कोई व्यक्ति, जिसका जीवनसाथी जीवित यानी वो शादीशुदा है तो लिव-इन रिलेशनशिप में नहीं रह सकता है. ये कानून का उल्लंघन माना जाएगा.
हाईकोर्ट की न्यायमूर्ति रेनू अग्रवाल की पीठ ने अपने जीवनसाथी को तलाक दिए बिना लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे जोड़े की ओर से दायर सुरक्षा याचिका को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की. इस दौरान न्यायाधीश ने कहा कि कोर्ट ऐसे संबंधों की रक्षा नहीं कर सकता जो कानून के हिसाब से नहीं हैं.
यदि कोर्ट इस प्रकार के मामलों में शामिल होता है और अवैध संबंधों को संरक्षण देता है तो इससे समाज में अराजकता पैदा होगी. इसलिए इस प्रकार के संबंधों का समर्थन नहीं किया जा सकता है. कोर्ट ने जोर देकर कहा कि इस तरह के रिश्ते को कोर्ट के आदेशों द्वारा समर्थित नहीं किया जा सकता है.
लाइव लॉ की एक रिपोर्ट के अनुसार, कोर्ट लिव-इन रिलेशन में रहने वाले एक जोड़े (याचिकाकर्ता संख्या 1-2) की ओर से दायर सुरक्षा याचिका पर सुनवाई कर रही थी. इसमें पुलिस अधिकारियों को सुरक्षा देने का निर्देश देने की मांग की गई थी.
हाईकोर्ट में दायर याचिका के मुताबिक महिला ने कहा है कि उसके माता पिता ने उसकी शादी तब की थी जब वो 13 साल की थी. इसलिए उसकी शादी अमान्य है. अब वह अपनी मर्जी से दूसरे साथी के साथ लिव-इन रिलेशन में रह रही है. आगे भी उसी के साथ रहना चाहती है.
उनकी सुरक्षा याचिका को चुनौती देते हुए स्थायी वकील ने तर्क दिया कि महिला पहले से शादीशुदा है. अपने पति से तलाक लिए बिना वो दूसरे व्यक्ति के साथ रह रही है. इसलिए कोर्ट इस संबंध को मान्यता नहीं दे सकता है.
कोर्ट ने कहा कि वह पक्षों को इस तरह साथ (लिव-इन रिलेशनशिप में रहना) रहने की अनुमति नहीं दे सकता, क्योंकि कल याचिकाकर्ता कह सकते हैं कि इस कोर्ट ने उनके अवैध संबंधों को मंजूरी दे दी है. इसके अलावा कोर्ट ने कहा कि पुलिस को उन्हें सुरक्षा का निर्देश देना अप्रत्यक्ष रूप से ऐसे अवैध संबंधों को हमारी सहमति दे सकता है.