10 साल बाद मिला इंसाफ, डॉक्टर की लापरवाही से गई आंखों की रोशनी, अस्पताल देगा 6.50 लाख मुआवजा

राजस्थान में डॉक्टर की लापरवाही से आंख की रोशनी खोने वाले श्रीराम को 10 साल बाद इंसाफ मिला. झुंझुनूं उपभोक्ता आयोग ने डॉक्टर और अस्पताल को 6.50 लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया.

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Km Jaya

झुंझुनू: राजस्थान में 10 साल की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद सीकर जिले के लक्ष्मणगढ़ कस्बे के श्रीराम को आखिरकार इंसाफ मिल गया. झुंझुनूं जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग ने नवलगढ़ स्थित सेठ आनंदराम जयपुरिया नेत्र अस्पताल और डॉक्टर ईसरत सदानी को लापरवाही का दोषी ठहराया है. आयोग ने आदेश दिया है कि अस्पताल और डॉक्टर मरीज श्रीराम को 6.50 लाख रुपये का मुआवजा 45 दिनों के भीतर दें, साथ ही यह रकम 2015 से 6 प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित अदा करनी होगी.

फैसले में आयोग के अध्यक्ष मनोज कुमार मील ने टिप्पणी की कि आंखें प्रकृति का अनुपम उपहार हैं और हर चिकित्सक पर यह नैतिक जिम्मेदारी होती है कि वह मरीज के जीवन और दृष्टि की पूरी सावधानी से रक्षा करे. अदालत ने कहा कि डॉक्टर ने मरीज की पीड़ा को गंभीरता से नहीं लिया और उचित उपचार नहीं किया, जिससे उसकी आंख की रोशनी स्थायी रूप से चली गई.

जानें क्या है यह मामला?

मामला वर्ष 2012 का है, जब श्रीराम अपनी आंख के मोतियाबिंद ऑपरेशन के लिए जयपुरिया नेत्र अस्पताल गए थे. डॉक्टर ने उन्हें आश्वासन दिया था कि ऑपरेशन के बाद आंख पूरी तरह ठीक हो जाएगी. लेकिन ऑपरेशन के बाद उनकी आंख में दर्द, सूजन और धुंधलापन बढ़ गया. कई बार शिकायत करने के बावजूद डॉक्टर ने केवल दवाइयां देकर उन्हें टाल दिया. हालत बिगड़ने पर श्रीराम ने जयपुर के एसएमएस अस्पताल में जांच करवाई, जहां पता चला कि ऑपरेशन के दौरान आंख में गलत लेंस लगाया गया था, जिससे दृष्टि हमेशा के लिए चली गई.

अस्पताल ने दिया ये तर्क

2013 में श्रीराम ने उपभोक्ता आयोग में शिकायत दर्ज कराई. अस्पताल ने बचाव में कहा कि डॉक्टर अनुभवी हैं और संभवतः मरीज ने दवाइयां समय पर नहीं लीं या आंख को नुकसान पहुंचाया लेकिन आयोग ने अस्पताल के तर्कों को खारिज करते हुए कहा कि यदि मरीज की गलती होती तो उसका उल्लेख अस्पताल के रिकॉर्ड में होता. आयोग ने यह भी बताया कि अस्पताल और डॉक्टर को 10 साल (करीब 3426 दिन) का पर्याप्त समय दिया गया था, फिर भी वे कोई ठोस मेडिकल साक्ष्य नहीं दे सके.

अदालत ने क्या कहा?

अदालत ने टिप्पणी की कि आंखों की क्षति केवल शारीरिक नुकसान नहीं बल्कि एक अनमोल हानि है जो व्यक्ति के जीवन, आत्मविश्वास और दैनिक गतिविधियों को प्रभावित करती है. अदालत ने कहा कि चिकित्सक का पेशा केवल इलाज नहीं बल्कि विश्वास का प्रतीक है और डॉक्टर को हर परिस्थिति में पूर्ण सावधानी बरतनी चाहिए.