Rajasthan Assembly: राजस्थान विधानसभा में चल रहे मानसून सत्र के दौरान धर्मांतरण बिल पर बहस के बीच एक बड़ा सियासी बवाल खड़ा हो गया है. इस विवाद की शुरुआत तब हुई, जब जयपुर शहर से बीजेपी विधायक गोपाल शर्मा ने कांग्रेस के मुस्लिम विधायकों को घर वापसी की नसीहत दे डाली.
उन्होंने बिल का समर्थन करते हुए कहा कि मुस्लिम विधायक रफीक खान और अमीन कागजी को अपने पूर्वजों के मूल धर्म हिंदू धर्म में लौट आना चाहिए. उनके इस बयान से सदन में हंगामा मच गया और अब यह मामला राज्य की राजनीति में नया तूफान ला चुका है.
विधानसभा में चर्चा के दौरान बीजेपी विधायक गोपाल शर्मा ने दावा किया कि भारत में रहने वाले ज्यादातर मुसलमानों के पूर्वज कभी हिंदू थे, जिन्होंने डर या दबाव में इस्लाम कबूल किया. उन्होंने सदन में खुलेआम कहा कि जयपुर के मुस्लिम विधायक रफीक खान और अमीन कागजी को अब अपने मूल धर्म में लौट आना चाहिए. उन्होंने इसे घर वापसी की सलाह बताया और कहा कि इसमें कुछ भी आपत्तिजनक नहीं है.
बीजेपी विधायक के इस बयान पर कांग्रेस के मुस्लिम विधायकों ने तीखी प्रतिक्रिया दी है. रफीक खान ने आरोप लगाया कि गोपाल शर्मा ने उन्हें धर्म परिवर्तन के लिए उकसाया है, जो खुद इस बिल के दायरे में आता है. उन्होंने कहा कि जैसे ही धर्मांतरण बिल कानून बनेगा, सबसे पहले कार्रवाई खुद बीजेपी विधायक गोपाल शर्मा पर होनी चाहिए. उन्होंने सदन में शायरी के अंदाज में तंज कसते हुए कहा कि यह बिल सिर्फ राजनीतिक फायदे के लिए लाया गया है.
गौरतलब है कि इस बिल पर चर्चा के दौरान कांग्रेस के विधायक चर्चा में हिस्सा नहीं ले रहे थे, बल्कि सदन में मौजूद रहकर अन्य मुद्दों पर नारेबाजी कर रहे थे. इसी दौरान गोपाल शर्मा ने यह विवादित बयान दे दिया. हालांकि धर्मांतरण बिल ध्वनि मत से पारित हो गया, लेकिन उसके बाद से ही यह 'घर वापसी' टिप्पणी बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन गई है.
विवाद बढ़ता देख राजस्थान सरकार के कैबिनेट मंत्री और बीजेपी नेता अविनाश गहलोत ने विधायक गोपाल शर्मा का बचाव किया है. उन्होंने कहा कि गोपाल शर्मा ने किसी को धर्म बदलने के लिए नहीं कहा, बल्कि सिर्फ अपने पूर्वजों के धर्म में लौटने की बात की थी. उनके अनुसार, बयान को जानबूझकर तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया है ताकि राजनीतिक सहानुभूति हासिल की जा सके.
राजस्थान की राजनीति में इस बिल के जरिए धर्म और राजनीति की जंग और तेज होती दिख रही है. कांग्रेस इसे संविधान विरोधी और अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने वाला कदम बता रही है, जबकि बीजेपी इसे सांस्कृतिक मूल्यों की रक्षा के लिए जरूरी बता रही है.