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पंजाब में पराली जलाने की घटनाओं में 90% की कमी, मान सरकार की योजना हो रही कारगर

मान सरकार ने पराली प्रबंधन को केवल फाइलों में नहीं, खेतों में उतारा. हर जिले में अभियान छेड़ा गया. हज़ारों CRM मशीनें किसानों को दी गईं ताकि वे पराली को खेत में ही दबाकर मिट्टी में मिलाएं, न कि आग लगाएं. गांव-गांव में टीमें बनाई गईं, ब्लॉक स्तर पर मॉनिटरिंग हुई और अधिकारियों को ज़िम्मेदारी दी गई कि एक भी आग न लगे.

Gyanendra Sharma
bhagwant mann
Courtesy: Social Media

Punjab News: पंजाब में इस बार पराली और प्रदूषण के खिलाफ जो काम हुआ है, वह अब पूरे देश के लिए मिसाल बन चुका है. 2022 में आम आदमी पार्टी की सरकार बनने के बाद से ही मुख्यमंत्री भगवंत मान ने इस मुद्दे को अपनी प्राथमिकता में रखा और इसे सिर्फ एक पर्यावरणी समस्या नहीं, बल्कि पंजाब के भविष्य का सवाल मानकर अभियान छेड़ा. सरकार ने शुरुआत से ही साफ कर दिया था, पंजाब की हवा अब धुएं में नहीं घुटेगी. 2021 में 15 सितंबर से 21 अक्टूबर के बीच पराली जलाने के कुल 4,327 मामले दर्ज हुए थे. लेकिन 2025 में यही संख्या घटकर केवल 415 रह गई. यह कोई छोटा बदलाव नहीं, बल्कि करीब 90% की रिकॉर्ड कमी है. यह बताता है कि मान सरकार ने इस मुद्दे को कितनी गंभीरता से लिया और ज़मीनी स्तर पर किस तरह काम किया गया.

मान सरकार ने पराली प्रबंधन को केवल फाइलों में नहीं, खेतों में उतारा. हर जिले में अभियान छेड़ा गया. हज़ारों CRM मशीनें किसानों को दी गईं ताकि वे पराली को खेत में ही दबाकर मिट्टी में मिलाएं, न कि आग लगाएं. गांव-गांव में टीमें बनाई गईं, ब्लॉक स्तर पर मॉनिटरिंग हुई और अधिकारियों को ज़िम्मेदारी दी गई कि एक भी आग न लगे.

सख्ती और रणनीति का असर

इस सख्ती और रणनीति का असर संगरूर, बठिंडा, लुधियाना जैसे उन जिलों में सबसे ज़्यादा दिखा जो हर साल पराली की सबसे बड़ी समस्या माने जाते थे. जहां पहले हजारों मामले आते थे, वहीं अब इन जिलों में गिनती सैकड़ों से भी नीचे आ गई. कई जगह तो पराली जलाने की घटनाएं शून्य के करीब पहुंच चुकी हैं.

AQI पिछले वर्षों के मुकाबले 25 से  40 प्रतिशत तक सुधरा

सरकार की आक्रामक रणनीति का असर सिर्फ खेतों में नहीं बल्कि हवा में भी महसूस किया गया. अक्टूबर 2025 में लुधियाना, पटियाला और अमृतसर जैसे बड़े औद्योगिक और कृषि जिलों में AQI पिछले वर्षों के मुकाबले 25 से  40 प्रतिशत तक सुधरा. इसका सीधा असर दिल्ली-एनसीआर की हवा पर भी पड़ा. अब पंजाब के खेतों से उठने वाला धुआं पहले जैसा घना नहीं रहा, और पंजाब की पहचान अब प्रदूषण से नहीं बल्कि समाधान से जुड़ रही है.

सबसे अहम बात यह रही कि इस अभियान में किसानों को दुश्मन नहीं, बल्कि साथी बनाया गया. सरकार ने किसानों को भरोसा दिलाया कि पराली प्रबंधन में उन्हें अकेला नहीं छोड़ा जाएगा. किसान भी आगे आए और बड़े पैमाने पर मशीनों का इस्तेमाल किया. कई गांवों में किसान आपस में मिलकर मशीनें चला रहे हैं, पराली से खाद और ऊर्जा बना रहे हैं. पराली जलाने की जगह अब खेतों में नई सोच उभर रही है, खेती और पर्यावरण साथ-साथ चल सकते हैं.

मान सरकार ने एक मजबूत संदेश दिया है कि अगर सरकार नीयत से काम करे तो सालों पुरानी समस्या भी खत्म हो सकती है. पराली और प्रदूषण पर काबू पाने का जो काम पंजाब में हुआ है, वह किसी भाषण या नारे से नहीं बल्कि ज़मीनी कार्रवाई से हुआ है.

आज पंजाब की कहानी पूरे देश के लिए प्रेरणा है. मान सरकार ने जिस आक्रामक और संगठित तरीके से इस समस्या पर प्रहार किया, उसने पराली को प्रदूषण का प्रतीक नहीं बल्कि बदलाव की ताकत बना दिया. अब पंजाब पराली के धुएं में नहीं, तरक्की की नई रोशनी में देखा जा रहा है. किसान और सरकार की साझेदारी ने साबित कर दिया है, जब इरादा मज़बूत हो, तो हवा भी साफ होती है और ज़मीन भी हरी-भरी रहती है. यह वही पंजाब है, जिसने वर्षों से पराली के नाम पर बदनामी झेली, लेकिन अब वही पंजाब देश को दिखा रहा है कि समाधान कैसे बनाया जाता है. मान सरकार ने काम कर दिखाया है, और अब बाकी राज्यों की निगाहें भी पंजाब पर हैं.
 

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