menu-icon
India Daily

'मेरे अंग कोहिनूर से भी कीमती, पर जिंदगी में दर्द ही दर्द': इंदौर की पैरालाइज्ड टीचर ने राष्ट्रपति से मांगी इच्छामृत्यु

कुमारी चंद्रकांता जेठानी ने राष्ट्रपति को लिखे पत्र में कहा, “मैं आत्महत्या नहीं करूंगी, क्योंकि मैं अपने छात्रों को साहस के साथ जीना सिखाती हूं. लेकिन मेरा शरीर अब मेरा साथ नहीं देता.” 

auth-image
Edited By: Sagar Bhardwaj
 Indore paralyzed teacher Kumari Chandrakanta Jethani

इंदौर की कुमारी चंद्रकांता जेठानी हर सुबह व्हीलचेयर पर सरकारी स्कूल की कक्षा में पहुंचती हैं, दृढ़ निश्चय के साथ पढ़ाने का जज्बा लिए, भले ही उनका शरीर निरंतर असहनीय दर्द से कांपता हो. पूर्ण रूप से लकवाग्रस्त और साथ ना देने वाले शरीर से जूझ रहीं जेठानी ने अब राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से एक मार्मिक अपील की है: उन्हें गरिमा के साथ मृत्यु का अधिकार दिया जाए.

रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने राष्ट्रपति को लिखे पत्र में कहा, “मैं आत्महत्या नहीं करूंगी, क्योंकि मैं अपने छात्रों को साहस के साथ जीना सिखाती हूं. लेकिन मेरा शरीर अब मेरा साथ नहीं देता.” 

गलत दवा की खुराक ने तबाह कर दी जिंदगी

समर्पित शिक्षिका जेठानी, गंभीर अक्षमता के बावजूद, रोजाना घंटों पढ़ाती हैं. वे अपनी स्थिति के लिए कथित चिकित्सकीय लापरवाही को जिम्मेदार ठहराती हैं- अस्पताल में गलत दवा की खुराक ने उन्हें लकवाग्रस्त कर दिया. बाद में एक आश्रम में भेजे जाने पर उनकी हालत और बिगड़ गई. फिर भी, उन्होंने निस्वार्थ भाव से जीवन जिया. उन्होंने अपनी संपत्ति स्कूली बच्चों के कल्याण के लिए दान कर दी और अपने शरीर व अंगों को एमजीएम मेडिकल कॉलेज को समर्पित किया.

मेरे अंग हीरे से भी मूल्यवान हैं

 उन्होंने कहा, “मेरे अंग मेरे लिए बेकार हैं, लेकिन अगर वे किसी की आंखों की रोशनी या जीवन बचा सकते हैं, तो वे कोहिनूर हीरे से भी अधिक मूल्यवान हैं.”इच्छामृत्यु की गुहारअब, जेठानी का कहना है कि उनकी सहनशक्ति की सीमा खत्म हो चुकी है. वे दर्द से मुक्ति चाहती हैं. इच्छामृत्यु, जिसे "दया मृत्यु" भी कहा जाता है, किसी व्यक्ति के दुख को कम करने के लिए जानबूझकर जीवन समाप्त करने की प्रक्रिया है. यह आमतौर पर लाइलाज बीमारी, कोमा, या असहनीय शारीरिक पीड़ा के मामलों में मानी जाती है.

भारत में इच्छामृत्यु का कानूनी पक्ष

भारत में सक्रिय इच्छामृत्यु (जैसे घातक इंजेक्शन देना) अवैध है और इसे हत्या के समकक्ष माना जाता है. निष्क्रिय इच्छामृत्यु, जिसमें जीवन रक्षक उपचार रोक दिया जाता है, सख्त दिशानिर्देशों के तहत वैध है. जेठानी की यह अपील न केवल उनकी व्यक्तिगत पीड़ा को उजागर करती है, बल्कि भारत में इच्छामृत्यु के कानूनी और नैतिक पहलुओं पर बहस को भी प्रज्वलित करती है.