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कर्नाटक हाईकोर्ट से RSS को मिली जीत! शर्तों के साथ चित्तपुर में निकालेंगे मार्च, प्रियांक खड़गे ने बोला हमला

कर्नाटक हाई कोर्ट की ओर से आरएसएस को चित्तपुर में मार्च निकालने की अनुमति दे दी गई है. हालांकि इसे लेकर कुछ निर्देश भी दिए गए हैं. कर्नाटक के मंत्री प्रियांक खड़गे ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी है.

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Edited By: Shanu Sharma
Karnataka High Court
Courtesy: X

कर्नाटक हाई कोर्ट से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) को चित्तपुर में नियोजित मार्ग मार्च के लिए हरी  झंडी मिल गई है. अदालत ने गुरुवार को 16 नवंबर को एक सीमित जुलूस की अनुमति दे दी है.

कलबुर्गी में आरएसएस संयोजक द्वारा दायर एक याचिका मामले पर अदालत का यह फैसला आया है. जिसमें संगठन को जिला प्रशासन द्वारा निर्धारित शर्तों के अधीन मार्च निकालने की अनुमति मिल गई है. 

प्रशासन ने नहीं दी थी अनुमति 

चित्तपुर में प्रशासन की ओर से 10 अक्टूबर को कानून-व्यवस्था का हवाला देते हुए इस आयोजन को मंजूरी नहीं दी गई थी. अधिकारियों का कहना था कि उसी दिन भीम आर्मी और कुछ अन्य संगठन भी उसी मार्ग से मार्च निकालने वाले हैं. उन्हे डर था कि इससे तनाव बढ़ सकती है. जिसकी वजह से आरएसएस को अनुमति नहीं दी गई. जिसके बाद संयोजक द्वारा याचिका दायर की गई, जिसपर फैसला सुनाते हुए हाई कोर्ट ने इजाजत दे दी.  

हाई कोर्ट ने क्या कहा?

हाई कोर्ट की ओर से अनुमति देते हुए निर्देश भी दिया गया है. जिसमें जिला प्रशासन द्वारा निर्धारित शर्तों के अधीन, 300 प्रतिभागियों और 50 सदस्यीय बैंड के साथ ही मार्च निकालने की अनुमति मिली है. साथ ही आरएसएस को एक नया आवेदन भी प्रस्तुत करने का निर्देश दिया गया है और अधिकारियों को इसका मूल्यांकन करके रिपोर्ट तैयार करने के लिए कहा गया है. हालांकि अदालत के इस फैसले के तुरंत बाद कर्नाटक के मंत्री प्रियांक खड़गे ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए आरएसएस पर निशाना साधा है. उन्होंने इस घटनाक्रम को अभूतपूर्व बताते हुए सोशल मीडिया पर पोस्ट शेयर किया है. 

प्रियांक खड़गे ने बोला हमला 

प्रियांक खड़गे ने अपने पोस्ट में लिखा कि अपने 100 साल के इतिहास में पहली बार होगा जब संगठन सरकार से अनुमति लेकर और देश के कानून का पालन करते हुए मार्च निकाल रहा है. उन्होंने संगठन पर हमला बोलते हुए लिखा कि जिस संगठन ने एक सदी भारत के स्वतंत्रता आंदोलन की अवहेलना, संविधान और राष्ट्रीय ध्वज का विरोध और कानून की अनदेखी में बिताई, उसे अब संवैधानिक सीमाओं के भीतर काम करने के लिए मजबूर किया जा रहा है.

उन्होंने जोर देकर कहा कि कोई भी कानून से ऊपर नहीं है. न व्यक्ति, न संस्थाएं और निश्चित रूप से वे संगठन भी नहीं जो खुद को संविधान से बड़ा समझते हैं. उन्होंने प्रशासन के संयम और निष्पक्षता की प्रशंसा भी की है. उन्होंने बताया कि 30 हजार लोगों के साथ संगठन मार्च निकालना चाहता था लेकिन प्रशासन ने इस आयोजन को केवल 300 लोगों की सीमा तक के लिए तय कर दिया. साथ ही चित्तपुर के बाहर से आने वाले लोगों को अनुमति नहीं दी गई है और समय के साथ मार्ग का भी पालन करने का निर्देश दिया गया है.