नई दिल्ली: कर्नाटक में कांग्रेस की सत्ता के भीतर चल रहा आंतरिक कलह अब खुली बगावत का रूप ले चुका है. उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार के समर्थक विधायक मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को हटाकर अपने नेता को कुर्सी सौंपने की मांग को लेकर लगातार दिल्ली का रुख कर रहे हैं. पिछले एक सप्ताह में उनके तीन अलग-अलग जत्थे राष्ट्रीय राजधानी पहुंच चुके हैं, जिससे पार्टी हाईकमान पर दबाव स्पष्ट दिखाई दे रहा है.
सूत्रों के अनुसार, पहले दो बैचों के बाद तीसरा जत्था भी दिल्ली पहुंच गया है, जिसमें 6 से 8 विधायक शामिल बताए जा रहे हैं. ये विधायक कांग्रेस आलाकमान से स्पष्ट जवाब चाहते हैं कि प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन कब और कैसे होगा. वे के.सी. वेणुगोपाल, मल्लिकार्जुन खड़गे और राहुल गांधी से मुलाकात का समय माँग रहे हैं, लेकिन अभी तक कोई औपचारिक मीटिंग तय नहीं हो सकी है. विधायकों का कहना है कि जब तक उनकी मांगों पर ठोस आश्वासन नहीं मिलता, वे दिल्ली में डटे रहेंगे.
दिलचस्प बात यह है कि जिस समय शिवकुमार समर्थक विधायक दिल्ली में डेरा डाले हुए हैं, उसी समय कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे बेंगलुरु में डेरा डाले हुए हैं. वे दिल्ली लौटने वाले थे, लेकिन अचानक अपना कार्यक्रम टालकर कर्नाटक में ही रुक गए. पार्टी के अंदरूनी सूत्र बता रहे हैं कि खड़गे सिद्धारमैया, डीके शिवकुमार और प्रदेश कांग्रेस के अन्य वरिष्ठ नेताओं के साथ लगातार बंद कमरों में बैठकें कर रहे हैं. जाहिर है, दोनों खेमों को मनाने और बगावत की आग को ठंडा करने की कोशिश की जा रही है.
दो साल पुराना वादा
यह पूरा विवाद उस वादे से जुड़ा है जो 2023 के विधानसभा चुनाव के बाद दिल्ली में राहुल गांधी और सोनिया गांधी ने डीके शिवकुमार से किया था. तब शिवकुमार मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार थे, लेकिन पार्टी ने सिद्धारमैया को कमान सौंपी और शिवकुमार को उपमुख्यमंत्री बनाकर संतुष्ट करने की कोशिश की गई. साथ ही यह आश्वासन दिया गया था कि ढाई साल बाद (यानी 2025-26 में) कुर्सी शिवकुमार को सौंप दी जाएगी. अब जब वह समय नजदीक आ रहा है, शिवकुमार खेमा बेचैन हो उठा है. उनके समर्थक मान रहे हैं कि सिद्धारमैया कुर्सी छोड़ने के मूड में नहीं हैं और हाईकमान भी टालमटोल कर रहा है.
दोनों खेमों की संख्या-बल
कांग्रेस के पास कर्नाटक में 135 विधायक हैं. अनौपचारिक सर्वे के अनुसार शिवकुमार खेमे के पास करीब 50-55 विधायक हैं, जबकि सिद्धारमैया के साथ 60 से कुछ ज्यादा विधायक खड़े हैं. शेष तटस्थ या छोटे समूहों में बँटे हैं. यानी अभी सिद्धारमैया का पलड़ा भारी है, लेकिन अगर 20-25 विधायक भी शिवकुमार के साथ खुलकर आ गए तो सरकार अल्पमत में आ सकती है. यही वजह है कि हाईकमान किसी भी कीमत पर फूट को बढ़ने नहीं देना चाहता.
2028 का लोकसभा चुनाव भी दांव पर
कर्नाटक में 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 9 सीटें मिली थीं, जबकि भाजपा-जद(एस) गठबंधन ने 19-20 सीटें जीती थीं. पार्टी नेतृत्व नहीं चाहता कि 2028 के लोकसभा चुनाव से पहले प्रदेश में अस्थिरता का माहौल बने. इसलिए खड़गे और वेणुगोपाल दोनों खेमों को समझा-बुझाकर बीच का रास्ता निकालने में जुटे हैं.