रांची: झारखंड की राजनीति में एक बड़ा मोड़ उस समय आया जब मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को हाईकोर्ट से राहत की खबर मिली. जमीन घोटाले से जुड़े ईडी केस में निचली अदालत ने उनकी व्यक्तिगत पेशी अनिवार्य कर दी थी, जिसे उन्होंने चुनौती दी थी.
अब हाईकोर्ट ने निचली अदालत का आदेश पलटते हुए सोरेन को व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट दे दी है. इससे राज्य की राजनीतिक हलचल के बीच सोरेन और उनकी सरकार को राहत की सांस मिली है.
रांची में बुधवार को झारखंड हाईकोर्ट ने हेमंत सोरेन की याचिका पर सुनवाई की. जस्टिस एके चौधरी की बेंच ने स्पष्ट किया कि मुख्यमंत्री को एमपी-एमएलए कोर्ट में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने की जरूरत नहीं है. कोर्ट ने कहा कि उनकी जगह अब उनके वकील पेश हो सकेंगे. इस आदेश ने निचली अदालत के पिछले निर्देश को सीधे तौर पर पलट दिया.
सोरेन की कानूनी टीम का कहना था कि निचली अदालत का 12 दिसंबर वाला आदेश अनुचित था क्योंकि उनके मुवक्किल ने ईडी के समन का जवाब भेजा था. वकील ने तर्क दिया कि मुख्यमंत्री की व्यस्तताओं और संवैधानिक पद को देखते हुए व्यक्तिगत पेशी अनिवार्य नहीं होनी चाहिए. हाईकोर्ट ने इन तर्कों को स्वीकारते हुए निचली अदालत के निर्देश पर रोक लगा दी.
प्रवर्तन निदेशालय ने सोरेन को भूमि घोटाले की जांच के सिलसिले में कई बार समन भेजे थे. ईडी के अनुसार, कुल 10 समन जारी किए गए, जिनमें से सिर्फ दो बार मुख्यमंत्री ने कार्यालय में उपस्थित होकर बयान दिया. ईडी की शिकायत थी कि बाकी समन को उन्होंने अनदेखा किया, जिसके आधार पर समन अवहेलना का मामला बनाया गया.
सोरेन की ओर से कहा गया कि उन्होंने ईडी के सभी समन का जवाब भेजा था और जांच प्रक्रिया में सहयोग किया है. उनका कहना था कि कुछ समन ऐसे थे जिनका जवाब लिखित रूप में दिया गया था. इसी आधार पर उन्होंने व्यक्तिगत पेशी की बाध्यता हटाने की मांग की थी. हाईकोर्ट ने इन दलीलों को पर्याप्त माना और उन्हें राहत देने का फैसला सुनाया.
हाईकोर्ट के इस फैसले से झारखंड की राजनीति में नई चर्चा शुरू हो गई है. विपक्ष इसे अलग नजरिये से देख रहा है, जबकि सत्ताधारी गठबंधन इसे न्यायिक राहत के रूप में प्रस्तुत कर रहा है. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इस निर्णय से सोरेन की रणनीति को मजबूती मिलेगी और आने वाले दिनों में राज्य की राजनीतिक स्थिति पर इसका असर दिखाई दे सकता है.