नई दिल्ली: दिल्ली एनसीआर में प्रदूषण ने हालात को इतना खराब कर दिया है कि एम्स के चिकित्सकों ने इसे स्वास्थ्य इमरजेंसी जैसा बताया है. राजधानी का वायु गुणवत्ता सूचकांक मंगलवार को 374 दर्ज हुआ, जो बेहद खराब श्रेणी में आता है. कई इलाकों में एक्यूआई 400 से ऊपर पहुंच गया है. विशेषज्ञों का कहना है कि लगातार बढ़ता प्रदूषण सांस और फेफड़ों से जुड़ी गंभीर समस्याओं को जन्म दे रहा है.
एम्स पल्मोनरी मेडिसिन विभाग के प्रमुख डॉ. अनंत मोहन ने बताया कि पहले जिन मरीजों की बीमारी नियंत्रण में थी, अब वे बढ़ी हुई शिकायतों के साथ अस्पताल पहुंच रहे हैं. हल्की खांसी जो पहले तीन चार दिन में ठीक होती थी, अब तीन चार हफ्ते तक बनी रहती है. इसे उन्होंने स्वास्थ्य आपातकाल जैसी स्थिति कहा.
डॉ. मोहन का कहना है कि प्रदूषण को जब तक सभी हेल्थ इमरजेंसी नहीं मानेंगे, तब तक इससे राहत पाना मुश्किल होगा. दिल्ली एनसीआर में बीते कई दिनों से एक्यूआई 300 से 400 के बीच बना हुआ है. एम्स के पल्मोनरी विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. सौरभ मित्तल ने कहा कि प्रदूषण से बचाव के लिए एन 95 मास्क का इस्तेमाल जरूरी है ताकि व्यक्तिगत स्तर पर सुरक्षा मिल सके.
एम्स के पूर्व डॉक्टर गोपी चंद खिलनानी ने हाल में सलाह दी थी कि दिसंबर के अंत में कुछ समय के लिए दिल्ली एनसीआर से बाहर निकल जाना बेहतर है. इससे सांस संबंधी समस्याएं कम हो सकती हैं. विशेषज्ञों के अनुसार लगातार प्रदूषण के संपर्क में रहने से अलग अलग समयावधि में स्वास्थ्य पर भिन्न प्रभाव पड़ता है. तीन दिन तक रहने पर गला, आंख और नाक में जलन के साथ थकान और हल्का सांस लेना प्रभावित होता है.
सात दिन तक संपर्क रहने से तेज खांसी और अस्थमा के मरीजों में लक्षण बढ़ सकते हैं. आठ से पंद्रह दिन में फेफड़ों पर असर बढ़ जाता है और बच्चों में फेफड़ों की ग्रोथ प्रभावित होने लगती है. एक महीने से ज्यादा संपर्क में रहने पर दमा स्थायी रूप से बिगड़ सकता है.
डॉक्टरों ने चेतावनी दी है कि प्रदूषण सीओपीडी बीमारी को तेजी से बढ़ा रहा है. लैंसेट और जामा में प्रकाशित शोधों के अनुसार भारत में हर सौ में से नौ लोग सीओपीडी से पीड़ित हैं और इनमें से 69.8 प्रतिशत मौतों का कारण वायु प्रदूषण है. विशेषज्ञों का कहना है कि दिल्ली एनसीआर में यह संख्या राष्ट्रीय औसत से अधिक हो सकती है. धूम्रपान, बायोमास ईंधन, कोयला और लकड़ी के धुएं से यह बीमारी और बढ़ती है.