राजधानी दिल्ली की हवा ने आखिरकार चेतावनी की लाल रेखा पार कर ली है. नवंबर के दूसरे हफ्ते में प्रदूषण स्तर इस कदर बढ़ गया कि इस साल पहली बार AQI ‘सीवियर’ कैटेगरी में पहुंच गया. सोमवार तक जो हवा ‘वेरी पूअर’ थी, मंगलवार को अचानक खतरनाक स्तर पर चली गई. विशेषज्ञ इसे मौसम की स्थिरता, धूल और स्थानीय उत्सर्जन का संयुक्त असर मान रहे हैं, जिसने दिल्लीवासियों की सांसें और भारी कर दी हैं.
CPCB के ताजा आंकड़ों के अनुसार दिल्ली का औसत AQI 428 रहा, जो ‘सीवियर’ श्रेणी में आता है. इसका मतलब है कि यह स्तर अब सेहतमंद लोगों को भी प्रभावित कर सकता है, जबकि अस्थमा या हृदय रोग से जूझ रहे लोगों के लिए यह गंभीर खतरा है. पिछली बार इतनी खराब हवा दिसंबर 2024 में दर्ज की गई थी.
मौसम विशेषज्ञों के अनुसार, बीते कुछ दिनों से दिल्ली-एनसीआर में हवा की रफ्तार बेहद धीमी है. हवा के स्थिर रहने से प्रदूषक कण वायुमंडल में फंसे रह जाते हैं. वहीं, वाहनों का धुआं, निर्माण कार्य और ठंड के शुरुआती दौर में बढ़ी पराली की गंध ने मिलकर हवा को और जहरीला बना दिया है.
AIIMS और सफदरजंग अस्पताल के डॉक्टरों का कहना है कि बीते कुछ दिनों में सांस की तकलीफ और आंखों में जलन के मरीजों की संख्या बढ़ी है. विशेषज्ञों ने सलाह दी है कि सुबह-सुबह बाहर निकलने से बचें और एन-95 मास्क का इस्तेमाल करें. बुजुर्ग, बच्चे और गर्भवती महिलाएं इन दिनों विशेष सतर्कता बरतें.
दिल्ली सरकार ने प्रदूषण नियंत्रण के तहत ग्रेप-4 चरण लागू रखा है. निर्माण कार्यों पर रोक, ट्रकों के प्रवेश पर पाबंदी और सार्वजनिक परिवहन को बढ़ाने जैसे कदम जारी हैं. पर्यावरण मंत्रालय ने साफ किया है कि स्थिति पर लगातार निगरानी रखी जा रही है और हवा की गुणवत्ता सुधारने के लिए सभी एजेंसियां एक्शन में हैं.
दिल्ली की हवा इस वक्त स्वास्थ्य के लिए खतरा बन चुकी है. AQI 428 न केवल आंकड़ा है, बल्कि राजधानी की सांसों पर मंडराते संकट की गवाही भी देता है. विशेषज्ञों का मानना है कि हवा में सुधार तभी संभव है जब मौसम में बदलाव के साथ सख्त नियंत्रण उपाय भी जारी रहें.