लाखों जानें ले रहा वायु प्रदूषण! हर साल बढ़ रहा मौतों का आंकड़ा, रिपोर्ट में चौंकाने वाले खुलासे
स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर 2025 रिपोर्ट के अनुसार, वायु प्रदूषण दुनिया में अकाल मौतों का प्रमुख कारण बन गया है. PM2.5 और ओजोन जैसे सूक्ष्म कण हृदय रोग, स्ट्रोक, फेफड़ों के कैंसर जैसी बीमारियाँ बढ़ा रहे हैं.
दुनिया भर में वायु प्रदूषण (Air Pollution) अब सिर्फ पर्यावरण की नहीं, बल्कि स्वास्थ्य संकट (Health Crisis) की गंभीर समस्या बन चुका है. नई स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर 2025 (State of Global Air 2025) रिपोर्ट में बताया गया है कि प्रदूषण आज दुनिया में अकाल मृत्यु (Premature Deaths) का एक प्रमुख कारण बन गया है. रिपोर्ट के अनुसार, वायु प्रदूषण अब दुनिया के सबसे बड़े जानलेवा कारकों में से एक है, जो हर साल लाखों लोगों की जान ले रहा है.
रिपोर्ट के मुख्य निर्देश
इस रिपोर्ट में बताया गया है कि वायु प्रदूषण से जुड़ी मौतों की संख्या लगातार बढ़ रही है. इसका कारण केवल बढ़ती जनसंख्या नहीं, बल्कि शहरीकरण, औद्योगिकीकरण और लगातार बिगड़ती वायु गुणवत्ता भी है.
रिपोर्ट के अनुसार, लगभग हर दस में से नौ मौतें गैर-संचारी रोगों (Non-Communicable Diseases) से जुड़ी होती हैं, जिनमें हृदय रोग (Heart Disease), स्ट्रोक (Stroke), फेफड़ों की पुरानी बीमारियाँ (COPD) और फेफड़ों का कैंसर (Lung Cancer) शामिल हैं.
पहले वायु प्रदूषण को केवल “फेफड़ों की बीमारी” माना जाता था, लेकिन अब वैज्ञानिक प्रमाणों से यह स्पष्ट हो गया है कि यह दिल, दिमाग और रक्त प्रणाली पर भी गहरा असर डालता है.
वायु प्रदूषण कैसे बनता है मौत का कारण?
वायु प्रदूषण एक जटिल मिश्रण है जिसमें PM2.5, ओजोन (O₃), नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx), सल्फर डाइऑक्साइड (SO₂) जैसे हानिकारक तत्व शामिल होते हैं. इनमें से सबसे घातक तत्व PM2.5 है. यानी 2.5 माइक्रोन से छोटे कण, जो सीधे हमारे फेफड़ों और रक्त प्रवाह तक पहुंच जाते हैं.
फेफड़ों में प्रवेश:
PM2.5 कण इतने छोटे होते हैं कि वे फेफड़ों की गहराई तक पहुंचकर ऊतकों में सूजन (Inflammation) पैदा करते हैं.
शरीर में सूजन का फैलाव:
फेफड़ों की सूजन से उत्पन्न संकेत रक्त में पहुंचते हैं, जिससे पूरे शरीर में सूजन बढ़ जाती है. यह सूजन धमनियों की दीवारों को कमजोर करती है, जिससे दिल का दौरा और स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है.
रक्त वाहिकाओं पर असर:
प्रदूषक रक्त के थक्के जमने की प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं और रक्त वाहिकाओं के कार्य को कमजोर करते हैं, जिससे हृदय संबंधी घातक घटनाएं होती हैं.
दीर्घकालिक नुकसान:
लंबे समय तक प्रदूषण के संपर्क में रहने से क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (COPD), फेफड़ों का कैंसर, और हृदय रोग जैसी बीमारियां विकसित होती हैं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, प्रदूषण से होने वाली अधिकांश मौतें इस्केमिक हृदय रोग और स्ट्रोक के कारण होती हैं, जबकि शेष मौतें फेफड़ों के संक्रमण, COPD और कैंसर से होती हैं.
भारत और विश्व में बढ़ता खतरा
भारत सहित दक्षिण एशिया के कई देशों में प्रदूषण का स्तर चिंताजनक रूप से ऊँचा है. रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि अगर मौजूदा रुझान जारी रहे, तो भारत, चीन और पाकिस्तान जैसे देशों में प्रदूषण-जनित बीमारियों से मौतों की संख्या और बढ़ सकती है.
दिल्ली, लखनऊ, पटना और कानपुर जैसे शहर लगातार दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों की सूची में बने हुए हैं. इससे बुजुर्गों, बच्चों और गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ रहा है.
मौतों के खतरे को कैसे कम किया जा सकता है?
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि सामूहिक और व्यक्तिगत स्तर पर कदम उठाकर इस खतरे को काफी हद तक कम किया जा सकता है.
नीतिगत और सरकारी स्तर पर आवश्यक कदम:
- स्वच्छ ऊर्जा (Clean Energy) को बढ़ावा देना — कोयले और डीज़ल की जगह अक्षय ऊर्जा का उपयोग.
- वाहन प्रदूषण नियंत्रण — सार्वजनिक परिवहन, इलेक्ट्रिक वाहन और उत्सर्जन मानकों को सख्ती से लागू करना.
- औद्योगिक नियमों का पालन — फैक्ट्रियों से निकलने वाले धुएं और रासायनिक उत्सर्जनों पर सख्त निगरानी.
कचरा प्रबंधन और खुले में जलाने पर प्रतिबंध.
व्यक्तिगत स्तर पर सावधानियां
- स्वच्छ खाना पकाने के ईंधन (LPG, बायोगैस) का उपयोग करें और रसोई को हवादार रखें.
- घर के अंदर कचरा या प्लास्टिक न जलाएं.
- N95 या FFP2 मास्क का उपयोग करें, खासकर जब AQI (Air Quality Index) बहुत खराब हो.
- HEPA फिल्टर वाले एयर प्यूरीफायर का उपयोग करें, विशेषकर बच्चों और बुजुर्गों के लिए.
- प्रदूषण अधिक होने पर बाहरी गतिविधियां सीमित करें.
विशेषज्ञों की राय
स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि प्रदूषण अब केवल पर्यावरणीय मुद्दा नहीं, बल्कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य आपातकाल बन चुका है. एम्स (AIIMS) और आईसीएमआर (ICMR) के शोधकर्ताओं के अनुसार, भारत में हर साल लगभग 12-15 लाख मौतें सीधे या परोक्ष रूप से वायु प्रदूषण से जुड़ी होती हैं. डॉक्टरों का कहना है कि अगर सरकार और नागरिक मिलकर समय रहते ठोस कदम नहीं उठाते, तो आने वाले दशक में यह संख्या और बढ़ सकती है.