रायपुर: हिंदी साहित्य की दुनिया में आज एक बड़ी दुखद खबर सामने आई है. प्रसिद्ध कवि, उपन्यासकार और कहानीकार विनोद कुमार शुक्ल का 88 वर्ष की आयु में निधन हो गया. वे लंबे समय से अस्वस्थ थे और रायपुर के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में भर्ती थे. वहां इलाज के दौरान उन्होंने अंतिम सांस ली. उनके निधन की खबर से पूरे साहित्य जगत में शोक की लहर दौड़ गई है.
विनोद कुमार शुक्ल का जन्म 1 जनवरी 1937 को छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव में हुआ था. वे छत्तीसगढ़ के पहले और हिंदी साहित्य के उन चुनिंदा लेखकों में से एक थे, जिन्हें भारत का सबसे बड़ा साहित्य सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला. इस साल 2024 के लिए 59वें ज्ञानपीठ पुरस्कार की घोषणा हुई थी, जो उन्हें उनकी अनोखी लेखन शैली के लिए दिया गया. विडंबना देखिए कि पुरस्कार की घोषणा के कुछ महीनों बाद ही वे हमें अलविदा कह गए.
शुक्ल जी की लेखनी को 'जादुई यथार्थवाद' के लिए जाना जाता है. वे साधारण जीवन की छोटी-छोटी बातों को इतनी खूबसूरती से बयां करते थे कि पढ़ने वाला मंत्रमुग्ध हो जाता. उनकी रचनाएं आम आदमी की जिंदगी, उसके संघर्ष और छोटी खुशियों को इतनी गहराई से छूती हैं कि लगता है जैसे अपनी कहानी पढ़ रहे हों. उनकी सबसे मशहूर रचना है उपन्यास 'नौकर की कमीज'. यह किताब एक साधारण सरकारी कर्मचारी की जिंदगी की कहानी है, जो अपनी कमीज को लेकर कितने भावुक हो जाता है. इस उपन्यास पर मशहूर फिल्मकार मणि कौल ने फिल्म भी बनाई थी, जो काफी सराही गई. दूसरी महत्वपूर्ण किताब है 'दीवार में एक खिड़की रहती थी', जिसके लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार भी मिला.
उनकी कविताओं का संग्रह 'सब कुछ होना बचा रहेगा' भी बहुत लोकप्रिय है. इनके अलावा 'खिलेगा तो देखेंगे', 'पेड़ पर कमरा' जैसी रचनाएं भी पाठकों के दिलों में बस गई हैं. शुक्ल जी ने कभी बड़े शहरों की चकाचौंध नहीं चुनी. वे ज्यादातर समय रायपुर में ही रहे और वहां की सादगी से अपनी लेखनी को तराशा. वे कृषि विश्वविद्यालय में पढ़ाते भी थे, लेकिन उनका असली प्यार लेखन था. उनकी भाषा इतनी सरल और जादुई होती थी कि बड़े-बड़े आलोचक भी उनके फैन हो गए.