छत्तीसगढ़ के आदिवासी कल्याण विभाग की भर्ती में घोटाले का मामला सामने आया है, जहां 2013 में निकली 559 पदों की वैकेंसी पर 605 लोगों को नौकरी दे दी गई, नियमों के अनुसार नए कर्मचारियों को तीन साल तक सीमित वेतन मिलना था, लेकिन उन्हें शुरुआत से ही 10,890 रुपए मासिक वेतन मिलने लगा, जबकि तय राशि 4,943 रुपए थी. 16 महीनों तक इस गड़बड़ी पर किसी की नजर नहीं गई, जिससे सरकार को करोड़ों रुपये का नुकसान हुआ है.
10 साल बाद जब कर्मचारियों को स्थायी करने की प्रक्रिया शुरू हुई, तब यह चौंकाने वाला तथ्य सामने आया कि प्रमोशन सूची में 11 ऐसे कर्मचारियों के नाम थे, जिनकी पहले ही मृत्यु हो चुकी थी. इनमें फूलकुमारी, गणेश राम, परखित कुमार, चंपा चौहान जैसे कई नाम शामिल हैं, जिनकी मौत 2016 से 2021 के बीच हो चुकी थी. इसके बावजूद उन्हें दस्तावेज़ों में प्रमोट कर दिया गया.
शिकायत मिलने पर विभाग ने आंतरिक जांच की, जिसमें गड़बड़ी की पुष्टि हुई और रायगढ़ के सहायक आयुक्त को निलंबित किया गया. हालांकि, इसके बाद कार्रवाई ठंडी पड़ गई. जब मामला विधानसभा में उठा, तो 2025 में दोबारा जांच के आदेश दिए गए. कांग्रेस ने इसे बीजेपी सरकार की "घूसखोरी की नीति" बताया, जबकि बीजेपी ने इसे एक "इंसानी गलती" कहकर सफाई दी है.