Bihar Assembly Elections: बिहार की राजनीति एक बार फिर गरमा गई है. चुनाव आयोग अक्टूबर के पहले सप्ताह में विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान कर सकता है. इस बार का चुनाव दिलचस्प होने वाला है, क्योंकि खबरों के मुताबिक तीन नहीं बल्कि केवल दो चरणों में चुनाव संपन्न हो सकते हैं. मुकाबला सत्तारूढ़ एनडीए गठबंधन और विपक्षी इंडिया गठबंधन के बीच कड़ा होगा. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, जो बीस साल से अधिक समय से सत्ता में हैं, जनता से एक बार फिर भरोसा मांगेंगे. वहीं, विपक्ष बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और 'वोट चोरी' जैसे मुद्दों पर आक्रामक रुख अपनाए हुए है.
कांग्रेस नेता राहुल गांधी लगातार अपनी सभाओं में आरोप लगा रहे हैं कि, 'बिहार में चुनावों में वोट चोरी की परंपरा रही है, इस बार जनता इसका हिसाब मांगेगी.' दूसरी ओर, आरजेडी नेता तेजस्वी यादव बेरोजगारी और पलायन के मुद्दे को लेकर सरकार को घेर रहे हैं. उनका कहना है कि, 'नीतीश कुमार ने युवाओं को नौकरी का वादा किया, लेकिन आज भी लाखों लोग राज्य से बाहर पलायन करने को मजबूर हैं.'
2023 में कराए गए जातीय सर्वेक्षण ने इस चुनाव को और अहम बना दिया है. रिपोर्ट के अनुसार,
सर्वेक्षण के आधार पर नीतीश सरकार ने नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण को 50% से बढ़ाकर 65% कर दिया था. हालांकि, पटना हाईकोर्ट ने इस फैसले पर रोक लगा दी, लेकिन इससे नीतीश की ओबीसी नेता वाली छवि मजबूत हुई.
दिलचस्प पहलू यह है कि अप्रैल 2025 में केंद्र सरकार ने भी राष्ट्रीय जाति जनगणना के प्रस्ताव को मंजूरी दी. भाजपा, जो लंबे समय तक इस मुद्दे से दूर रही थी, अब इसे मानकर विपक्ष का बड़ा हथियार छीनने की कोशिश कर रही है. विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम भाजपा को ओबीसी वोट बैंक में और पैठ बनाने के साथ-साथ हिंदू एकजुटता की राजनीति को भी साधने में मदद करेगा. नीतीश कुमार अपनी छवि और भाजपा के साथ गठबंधन पर भरोसा करेंगे. उनका फोकस विकास और स्थिरता का संदेश देने पर होगा. और वहीं दूसरी ओर विपक्ष राहुल गांधी 'वोट चोरी' को राष्ट्रीय मुद्दा बनाने में जुटे हैं, जबकि तेजस्वी बेरोजगारी और पलायन को केंद्र में रखकर मोर्चा संभाल रहे हैं.