किशनगंज: बिहार चुनाव के दूसरे चरण की वोटिंग में अब सभी की निगाहें सीमांचल के किशनगंज पर टिकी हुई हैं, जो सियासी दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जाता है. सीमांचल की चौबीस विधानसभा सीटों में से चार सीटें किशनगंज जिले में आती हैं और यहां की राजनीति में जोरदार हलचल देखने को मिल रही है. पिछली बार किशनगंज जिले में ओवैसी की पार्टी AIMIM ने दो सीटों पर जीत हासिल की थी, जबकि कांग्रेस और RJD एक-एक सीट मिली थी.
इस बार, किशनगंज में महागठबंधन और AIMIM के बीच सीधी टक्कर है. RJD ने ठाकुरगंज सीट पर अपने मौजूदा विधायक सऊद आलम को फिर से मैदान में उतारा है, जबकि बाकी तीन सीटों पर टिकटों का खेल हुआ है. कांग्रेस ने AIMIM के पूर्व विधायक कमरूल होदा को किशनगंज सीट से अपना उम्मीदवार बनाया है, जबकि बहादुरगंज सीट पर AIMIM के पूर्व विधायक तौसीफ आलम को कांग्रेस ने अपना प्रत्याशी बनाया है. कोचाधामन सीट पर RJD ने JDU के पूर्व विधायक मुजाहिद आलम को उतारा है.
इस बार AIMIM ने भी पूरी ताकत के साथ मैदान में कदम रखा है. किशनगंज सीट पर AIMIM और बीजेपी के बीच मुकाबला है, और यदि AIMIM ने यहां अच्छा प्रदर्शन किया तो बीजेपी को फायदा हो सकता है. ठाकुरगंज और बहादुरगंज सीटों पर भी AIMIM का असर देखने को मिल सकता है, जिससे महागठबंधन को नुकसान हो सकता है.
किशनगंज जिले की राजनीति में मुस्लिम वोटरों की अहम भूमिका है, क्योंकि यहां की करीब 70 फीसदी आबादी मुस्लिम समुदाय से है. स्थानीय मुद्दों में रोजगार और विकास सबसे अहम हैं, लेकिन यहां की राजनीति में मुस्लिम और हिंदू के बीच विभाजन साफ दिखाई देता है. ओवैसी की पार्टी AIMIM ने मुस्लिम युवाओं के बीच अपनी जगह मजबूत कर ली है, जबकि कांग्रेस और आरजेडी का समर्थन भी मुस्लिम समुदाय में काफी मजबूत है.
किशनगंज का मौसम चाय की खेती के लिए उपयुक्त माना जाता है, लेकिन यहां के चाय बागान मालिक बताते हैं कि चाय की खेती मुनाफे का सौदा नहीं है. लोगों का मुख्य मुद्दा यहां रोजगार और विकास है और क्षेत्र की जनता चाहती है कि आने वाली सरकार इस इलाके के लिए खास ध्यान दे, उद्योगों को बढ़ावा दे और विकास की दिशा में ठोस कदम उठाए.