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कोहली के पिता का निधन हुआ तो मिथुन मन्हास थे दिल्ली के कप्तान, दी थी ये सलाह

समाचार एजेंसी पीटीआई को दिए एक साक्षात्कार में एक पूर्व क्रिकेटर ने याद किया कि कैसे दिसंबर 2006 में कर्नाटक के खिलाफ रणजी ट्रॉफी मैच के बीच में विराट कोहली के निधन के समय मन्हास दिल्ली के कप्तान थे. उन्होंने याद किया कि कैसे मन्हास उस समय सही फैसला लेना जानते थे.

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Edited By: Gyanendra Sharma
Mithun Manhas
Courtesy: Social Media

Mithun Manhas: भारतीय क्रिकेट कंट्रोल का अगला अध्यक्ष कौन होगा ये लगभग फाइल हो गया है. मिथुन मन्हास का नाम तय माना जा रहा है. मिथुन मन्हास को ऐसे व्यक्ति के रूप में माना जाता है, जो जानते हैं कि कब सही जगह पर होना है और सही समय पर 'क्या कहना है'. दिल्ली क्रिकेट में उनके समय से जुड़ी कई कहानियां उनके बारे में प्रचलित हैं.

समाचार एजेंसी  पीटीआई को दिए एक साक्षात्कार में एक पूर्व क्रिकेटर ने याद किया कि कैसे दिसंबर 2006 में कर्नाटक के खिलाफ रणजी ट्रॉफी मैच के बीच में विराट कोहली के निधन के समय मन्हास दिल्ली के कप्तान थे. उन्होंने याद किया कि कैसे मन्हास उस समय सही फैसला लेना जानते थे.

विराट कोहली के कप्तान थे मिथुन

पूर्व क्रिकेटर ने कहा, "जब विराट ने रणजी मैच के बीच में अपने पिता को खो दिया था और दिल्ली मुश्किल में थी, तब मिथुन कप्तान थे. इसके बावजूद, मिथुन ने विराट को घर जाने के लिए कहा और जब उन्होंने खेलने की ज़िद की, तो मिथुन मान गए. यही एक पहलू था." फिर, उन्होंने यह भी याद किया कि मन्हास सही लोगों से दोस्ती करना जानते थे.

विरेंद्र सहवाग के अच्छे दोस्त

खिलाड़ी ने आगे बताया कि  दूसरी तरफ, उनके ज़्यादातर दोस्त वीरू (वीरेंद्र सहवाग) और युवी (युवराज) जैसे ताकतवर अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी थे. मामूली टी20 रिकॉर्ड के बावजूद, उन्होंने दिल्ली डेयरडेविल्स (जब सहवाग कप्तान थे), पुणे वॉरियर्स और किंग्स इलेवन पंजाब (युवराज) के लिए 55 आईपीएल मैच खेले. एक समय वीरू और मिथुन की दोस्ती बहुत गहरी थी.  यही पैटर्न शुरू से ही देखा गया है, जब उन्हें पता था कि अपने करियर को आगे बढ़ाने के लिए किस क्लब को चुनना है और उस क्लब के साथ कितने समय तक रहना है.

क्रिकेटर ने कहा, उनकी क्रिकेट की योग्यता अच्छी-खासी थी, लेकिन उन्हें पता था कि उन्हें क्या चाहिए और कितने समय के लिए. वह रमन भैया (लांबा), अजय भैया (शर्मा), भासी भाई (केपी भास्कर), आकाश (चोपड़ा) या यूं कहें कि आशीष (नेहरा) या ऋषभ (पंत) जैसे शुद्ध सोनेट खिलाड़ी नहीं थे. दिल्ली में चयन होने तक वह सोनेट में ही थे और जब उन्हें ओएनजीसी में खेल कोटे से नौकरी मिल गई, तो वह सोनेट के ज़्यादा शौकीन नहीं रहे.