अमेरिका के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जॉन बोल्टन ने भारत में अगले राजदूत के रूप में सर्जियो गोर को राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा चुने जाने पर सवाल उठाते हुए कहा है कि वह उन्हें इस भूमिका के लिए "योग्य" नहीं मानते हैं. न्यूज एजेंसी ANI ने जॉन बोल्टन के हवाले से कहा, "मुझे नहीं लगता कि वह भारत में अमेरिकी राजदूत बनने के योग्य हैं."डोनाल्ड ट्रंप ने सर्जियो गोर को भारत में अमेरिका का अगला राजदूत और दक्षिण एवं मध्य एशियाई मामलों के लिए विशेष दूत नियुक्त किया है.
ट्रुथ पर घोषणा करते हुए, डोनाल्ड ट्रंप ने कहा, "मुझे यह घोषणा करते हुए खुशी हो रही है कि मैं सर्जियो गोर को भारत गणराज्य में हमारे अगले अमेरिका के राजदूत और दक्षिण और मध्य एशियाई मामलों के लिए विशेष दूत के रूप में पदोन्नत कर रहा हूँ. राष्ट्रपति कार्मिक के निदेशक के रूप में, सर्जियो और उनकी टीम ने रिकॉर्ड समय में हमारी संघीय सरकार के हर विभाग में लगभग 4,000 अमेरिका फर्स्ट पैट्रियट्स को नियुक्त किया है, हमारे विभाग और एजेंसियां 95% से अधिक भरी हुई हैं! सर्जियो अपनी पुष्टि तक व्हाइट हाउस में अपनी वर्तमान भूमिका में बने रहेंगे.
#WATCH | Washington, DC: On Sergio Gor, nominee as the next US Ambassador to India, former National Security Advisor of the United States, John Bolton says, "I don't think he's qualified to be U.S. Ambassador to India. I think this issue, when we look at the purchases of Russian… https://t.co/CqaDivHVxJ pic.twitter.com/RDeXwoKlQq
— ANI (@ANI) September 13, 2025
भारत-US संबंधों के मौजूदा तनावपूर्ण दौर में हो रही सर्जिया गोर की नियुक्ति
ट्रंप ने गोर को "महान मित्र" संबोधित करते हुए उनकी व्हाइट हाउस में योगदान की सराहना की. गोर, जो व्हाइट हाउस के प्रेसिडेंशियल पर्सनल ऑफिस के डायरेक्टर हैं, ट्रंप के करीबी सहयोगी माने जाते हैं. हालांकि, यह नियुक्ति भारत-अमेरिका संबंधों के मौजूदा तनावपूर्ण दौर में आ रही है, जहां ट्रंप ने भारतीय आयात पर 25% अतिरिक्त टैरिफ लगाकर कुल शुल्क को 50% कर दिया है.
रूसी तेल खरीद पर बोल्टन की टिप्पणी
बोल्टन ने भारत की रूसी तेल खरीद पर प्रतिबंधों के बावजूद जारी रखने को लेकर भी अपनी राय रखी. उन्होंने कहा कि कई देशों ने प्रतिबंध ढांचे में मौजूद खाई का फायदा उठाया.SSS बोल्टन ने स्पष्ट किया कि प्रतिबंधों का उद्देश्य रूस की उन राजस्वों को कम करना था जो यूक्रेन युद्ध को फंड कर सकते हैं, बिना यूरोप और अमेरिका में तेल की कीमतों को बढ़ाए.
हम रूसी युद्ध मशीन को ईंधन न दें- बोल्टन
बोल्टन ने आगे कहा कि,''उद्देश्य रूसी राजस्व को कम करना था जिससे यूक्रेन में युद्ध का वित्तपोषण किया जा सके, लेकिन वैश्विक बाज़ारों में रूस द्वारा तेल की बिक्री को इस तरह कम नहीं करना था जिससे यूरोप और अमेरिका के उपभोक्ताओं के लिए कीमतें बढ़ जाएं और इससे साफ तरीके से कीमत सीमा तय हो जाए, जिससे स्पष्ट रूप से मध्यस्थता की संभावना पैदा हो कि रूसियों से सीमा से कम कीमत पर ख़रीदा जाए और फिर उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मार्केट वैल्यू पर बेचा जाए. इसलिए मुझे लगता है कि कई लोग तर्क देंगे कि प्रतिबंधों का तकनीकी उल्लंघन भी नहीं हुआ था. उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि मुख्य ध्यान रूस के युद्ध प्रयासों को वित्तपोषित करने पर होना चाहिए. उन्होंने आगे कहा, "मूल उद्देश्य यह होना चाहिए कि हम रूसी युद्ध मशीन को ईंधन न दें."
भारत-अमेरिका संबंधों पर बोल्टन ने दी ये सलाह
इससे पहले, पूर्व एनएसए ने कहा था कि भारत को ट्रंप को एक "एक बार का प्रस्ताव" मानना चाहिए और यह मानकर अपने राष्ट्रीय हितों को आगे बढ़ाना चाहिए कि उनकी नीतियां "व्यापक अमेरिकी दृष्टिकोण" को प्रतिबिंबित करती हैं. भारत-अमेरिका संबंधों पर बोलते हुए बोल्टन ने कहा, "मैं कहूंगा कि संबंध अभी भी वैसे ही हैं... भारत सरकार को ट्रंप को एक बार के प्रस्ताव के रूप में देखना चाहिए और इससे निपटना चाहिए और जो भी कदम वे भारत के राष्ट्रीय हित में समझते हैं, उन्हें उठाना चाहिए, लेकिन इसे ट्रंप की विशिष्टता के रूप में समझना चाहिए और किसी बड़े अमेरिकी दृष्टिकोण को प्रतिबिंबित नहीं करना चाहिए..."
ट्रंप बहुत लेन-देन वाले शख्स
बोल्टन ने ट्रंप की विदेश नीति शैली की आलोचना करते हुए कहा, "ट्रंप के पास कोई समग्र राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति नहीं है. वह बहुत लेन-देन वाले हैं. मुझे लगता है कि भारत और अमेरिका के बीच तनाव का मुख्य कारण ट्रंप की अनिश्चित शैली है.
चीन पर टैरिफ न लगाने का सवाल
ट्रंप ने भारत से आयात पर अतिरिक्त 25 प्रतिशत टैरिफ लगा दिया है, ताकि नई दिल्ली पर रूस से रियायती दर पर कच्चा तेल खरीदने पर दबाव बनाया जा सके, जिससे भारतीय वस्तुओं पर कुल दंडात्मक शुल्क 50 प्रतिशत हो गया है और दोनों लोकतंत्रों के बीच व्यापार वार्ता में खटास आ गई है. लेकिन ट्रंप ने चीन द्वारा रूसी तेल की खरीद के कारण चीनी आयात पर अतिरिक्त टैरिफ लगाने से परहेज किया है, क्योंकि उनका प्रशासन बीजिंग के साथ एक नाजुक व्यापार समझौते पर काम कर रहा है.