नई दिल्ली: यमन के बंदरगाह शहर मुकाला में हुई हालिया बमबारी के बाद मध्य पूर्व की राजनीति में एक नया मोड़ देखने को मिला है. इस घटना के बाद संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) ने घोषणा की है कि वह सऊदी अरब से अपने शेष सैनिकों को वापस बुलाने जा रहा है. यह फैसला ऐसे समय में आया है जब यमन में पहले से ही सत्ता, क्षेत्रीय नियंत्रण और अलग-अलग गुटों के समर्थन को लेकर तनाव बना हुआ है.
मंगलवार को यूएई के फुजैराह बंदरगाह से एक समुद्री खेप यमन के मुकाला बंदरगाह पर पहुंची. इसके कुछ ही समय बाद सऊदी अरब ने मुकाला में हवाई हमले किए. सऊदी पक्ष का दावा था कि इस खेप में हथियार शामिल थे, जिन्हें अबू धाबी समर्थित दक्षिणी संक्रमणकालीन परिषद (STC) को भेजा जा रहा था. एसटीसी 2017 से यमन के दक्षिणी हिस्सों में अपनी अलग पहचान और नियंत्रण स्थापित करने की कोशिश कर रही है.
हालांकि, यूएई ने इन आरोपों को सिरे से खारिज किया. उसका कहना है कि यह खेप हथियारों की नहीं थी, बल्कि यमन में तैनात यूएई बलों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले वाहनों और लॉजिस्टिक सामान की थी.
यूएई के रक्षा मंत्रालय के अनुसार, सैनिकों को वापस बुलाने का फैसला आतंकवाद विरोधी अभियानों की सुरक्षा और प्रभावशीलता को ध्यान में रखकर लिया गया है. मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि यह कदम उसकी अपनी रणनीतिक समीक्षा का हिस्सा है.
वहीं, यूएई के विदेश मंत्रालय ने यह भी दोहराया कि देश यमन की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करता है और उसका उद्देश्य केवल वैध सरकार की बहाली और आतंकवाद के खिलाफ सहयोग करना है. यूएई पहले भी यह कह चुका है कि यमन का भविष्य और शासन व्यवस्था तय करना यमनी जनता और वहां के पक्षों का अधिकार है.
मुकाला की घटना से पहले ही दक्षिणी यमन में हालात तनावपूर्ण थे. इस महीने की शुरुआत में एसटीसी ने हद्रामौत और महरा प्रांतों के बड़े हिस्सों पर कब्जा कर लिया था, जहां तेल से जुड़ी अहम सुविधाएं भी स्थित हैं. इसके जवाब में सऊदी अरब समर्थित यमनी सेना और हद्रामौत जनजातीय गठबंधन ने इसका विरोध किया.
सऊदी अरब और यूएई दोनों यमन में अलग-अलग राजनीतिक और सैन्य गुटों का समर्थन करते रहे हैं. यही कारण है कि दोनों सहयोगी देशों के बीच भी रणनीतिक मतभेद खुलकर सामने आने लगे हैं.