नई दिल्ली: पाकिस्तान की राजनीति में उस वक्त हलचल मच गई जब जमीअत उलेमा-ए-इस्लाम (फजल) के प्रमुख मौलाना फजलुर रहमान ने अपनी ही सेना और सरकार की नीतियों पर खुलकर सवाल उठाए.
अफगानिस्तान में पाकिस्तानी सैन्य कार्रवाई के संदर्भ में उन्होंने भारत के 'ऑपरेशन सिंदूर' से तुलना करते हुए दोहरे मापदंडों का आरोप लगाया. यह बयान ऐसे समय आया है जब पाकिस्तान और अफगानिस्तान के रिश्ते लगातार तनावपूर्ण बने हुए हैं.
कराची में आयोजित 'मजलिस-ए-इत्तेहाद-ए-उम्मत' सम्मेलन में मौलाना फजलुर रहमान ने अफगानिस्तान में पाकिस्तानी हमलों की आलोचना की. उन्होंने कहा कि इन हमलों में आम नागरिकों की जान गई है. उनका तर्क था कि अगर पाकिस्तान अपने सीमापार हमलों को सही ठहराता है, तो फिर भारत की कार्रवाई पर सवाल उठाना तर्कसंगत नहीं है.
मौलाना रहमान ने भारत के 'ऑपरेशन सिंदूर' का सीधा उल्लेख किया. यह अभियान 7 मई को भारतीय सशस्त्र बलों ने पाकिस्तान और पीओके में आतंकवादी ठिकानों पर चलाया था. इन हमलों में बहावलपुर और मुरिदके जैसे आतंकी गढ़ निशाने पर थे. यह कार्रवाई 22 अप्रैल को कश्मीर में हुए आतंकी हमले के जवाब में की गई थी, जिसमें 26 निर्दोष नागरिक मारे गए थे.
फजलुर रहमान ने सवाल उठाया कि जब पाकिस्तान अफगानिस्तान में अपने दुश्मनों पर हमला करने को जायज मानता है, तो वही तर्क भारत भी पाकिस्तान के भीतर आतंकियों के खिलाफ दे सकता है. उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान अब पाकिस्तान पर वही आरोप लगा रहा है, जो पाकिस्तान लंबे समय से दूसरों पर लगाता आया है.
तालिबान के 2021 में सत्ता में लौटने के बाद से पाकिस्तान और अफगानिस्तान के रिश्ते बिगड़ते गए हैं. इस्लामाबाद का आरोप है कि अफगान धरती से पाकिस्तान विरोधी आतंकी गतिविधियां संचालित होती हैं, जबकि काबुल इन आरोपों से इनकार करता रहा है. हालिया सीमा झड़पों ने दोनों देशों के बीच अविश्वास और गहरा कर दिया है.
भारत ने हाल ही में अफगान नागरिकों की मौत पर पाकिस्तान की आलोचना की है. विदेश मंत्रालय ने अफगानिस्तान की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के समर्थन की बात दोहराई. मौलाना फजलुर रहमान के बयान को क्षेत्रीय राजनीति में एक असामान्य लेकिन अहम आवाज माना जा रहा है, जो पाकिस्तान के भीतर बढ़ते असंतोष की ओर इशारा करता है.