BRICS vs NATO: जिसतरह से BRICS और पश्चिमी देशों के बीच बढ़ता तनाव बढ़ता जा रहा है यह नए तरह के शीत युद्ध का संकेत दिखाई दे रहा है. जो आर्थिक और कूटनीतिक मोर्चे पर लड़ा जा रहा है. BRICS (ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका) अब 10 देशों का समूह बन चुका है, जिसमें मिस्र, इथियोपिया, इंडोनेशिया, ईरान और यूएई जैसे देश शामिल हैं.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक यह समूह वैश्विक अर्थव्यवस्था में 41% हिस्सेदारी रखता है और अब अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता कम करने, स्थानीय मुद्राओं में व्यापार बढ़ाने और एक नई साझा मुद्रा की योजना पर काम कर रहा है. इसके साथ ही, BRICS देशों ने संयुक्त राष्ट्र और विश्व बैंक जैसे संस्थानों में भारत और ब्राजील को अधिक प्रतिनिधित्व देने की मांग की.
इन कदमों से अमेरिका और NATO को यह खतरा महसूस हो रहा है कि BRICS वैश्विक सत्ता-संतुलन को उनके खिलाफ मोड़ रहा है. NATO के महासचिव मार्क रूटे ने हाल ही में भारत, चीन और ब्राजील को चेतावनी दी है कि यदि वे रूस के साथ व्यापार जारी रखते हैं तो उन्हें 100% आयात शुल्क और माध्यमिक प्रतिबंधों का सामना करना पड़ सकता है.
इस तरह की धमकी एक तरह से आर्थिक युद्ध की शुरुआत मानी जा सकती है, जिसमें सैन्य कार्रवाई की जगह आर्थिक दबाव और व्यापारिक प्रतिबंध मुख्य हथियार होंगे. इस स्थिति की तुलना अमेरिका और सोवियत संघ के बीच चले पुराने शीत युद्ध से की जा रही है, हालांकि आज की स्थिति कहीं अधिक जटिल और बहुपक्षीय है.
BRICS समूह, जिसे ग्लोबल साउथ की आवाज कहा जा रहा है, पश्चिमी देशों की आर्थिक नीतियों, इजराइल-ईरान युद्ध और डॉलर आधारित वैश्विक अर्थव्यवस्था की आलोचना कर रहा है. इस कारण पश्चिमी शक्तियों को BRICS की नीति अमेरिका विरोधी लग रही है. अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने BRICS को अमेरिका विरोधी संगठन बताया है और व्यापारिक दंड की मांग की है. इस घटनाक्रम से साफ है कि आने वाले समय में वैश्विक स्तर पर दो अलग ध्रुव बन सकते हैं एक BRICS के नेतृत्व में और दूसरा पश्चिमी देशों के नेतृत्व में जो बिना युद्ध के भी एक नए "आर्थिक शीत युद्ध" का संकेत दे रहे हैं.