नई दिल्ली: जापान से एक बड़ा और हैरान करने वाला फैसला सामने आया है जिसमें सरकार ने मुस्लिम समुदाय को दफनाने के लिए नई जमीन देने से साफ इनकार कर दिया है. सरकार का कहना है कि देश में जमीन की भारी कमी है और ऐसे में नए कब्रिस्तानों के लिए अलग से जगह देना संभव नहीं है. इसके बजाय सरकार ने सुझाव दिया है कि मुस्लिम नागरिक अपने दिवंगत परिजनों के शव अपने मूल देशों में भेजकर दफनाएं.
इस कदम ने जापान में रहने वाले मुस्लिम समुदाय के बीच गहरी चिंता पैदा कर दी है. जापान की जनसंख्या 12 करोड़ से ज्यादा है और देश का क्षेत्रफल बेहद सीमित है. जापान के कई शहर पहले से ही जनसंख्या घनत्व के कारण दबाव में हैं. इसी वजह से सरकार का कहना है कि जमीन का उपयोग बहुत सोच-समझकर करना पड़ता है और बड़े कब्रिस्तानों के लिए जगह निकालना मुश्किल होता जा रहा है.
जापान में करीब 2 लाख मुसलमान रहते हैं और पिछले कुछ वर्षों में इस संख्या में लगातार वृद्धि देखी गई है जिससे कब्रिस्तान की मांग भी बढ़ रही थी. जापान की धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं में दाह संस्कार की प्रमुख भूमिका है. यहां बौद्ध और शिंटो धर्म का गहरा प्रभाव है और 99 प्रतिशत से ज्यादा अंतिम संस्कार दाह संस्कार के रूप में होते हैं.
इस्लाम धर्म में दफनाना अनिवार्य माना जाता है इसलिए यह मुद्दा और संवेदनशील हो गया है. सरकार ने साफ किया है कि यह फैसला मुस्लिम रिचुअल्स के खिलाफ नहीं है बल्कि देश की धार्मिक संस्कृति और जमीन की उपलब्धता के आधार पर लिया गया है. मुस्लिम समुदाय के कई संगठनों ने इस फैसले को लेकर कड़ी नाराजगी जताई है.
मुस्लिम समुदाय का कहना है कि शव को अपने देश भेजना आर्थिक रूप से बेहद महंगा है और कई परिवार इसके खर्च को झेल नहीं सकते. इसके अलावा भावनात्मक रूप से भी यह निर्णय बहुत मुश्किल है. कई लोगों का कहना है कि जापान में रहने वाले मुसलमानों के लिए यह फैसला उनके धार्मिक अधिकारों पर सीधा असर डालता है.
जापान की धार्मिक जनसंख्या के आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार देश में 48.6 प्रतिशत लोग शिंटो धर्म से जुड़े हैं जबकि 46.4 प्रतिशत लोग बौद्ध धर्म का पालन करते हैं. लगभग 1.1 प्रतिशत लोग ईसाई धर्म से जुड़े हैं और करीब 4 प्रतिशत लोग अन्य धर्मों को मानते हैं.
मुस्लिम आबादी इनमें बहुत छोटी है लेकिन हाल के वर्षों में इसमें तेजी से वृद्धि हुई है. सरकार के इस फैसले के बाद अब मुस्लिम समुदाय को अपने अंतिम संस्कार की व्यवस्था के लिए नए विकल्प तलाशने होंगे.