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भारत में 'चक्का जाम' का क्या है इतिहास? संविधान बंद को लेकर क्या बोलता है?

भारत बंद एक सामूहिक विरोध का रूप है, जिसमें लोग अपने कार्य, व्यवसाय और दैनिक गतिविधियों को एक निश्चित अवधि के लिए स्वेच्छा से बंद रखते हैं ताकि सरकार या समाज का ध्यान किसी विशेष मुद्दे की ओर आकर्षित किया जा सके.

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Edited By: Gyanendra Sharma
Bharat Band
Courtesy: Social Media

बुधवार को कई संगठनों ने भारत बंद का ऐलान किया है. इस कारण देशभर में हड़ताल हो रही है. इस बंद में 25 करोड़ से ज्यादा लोग शामिल होने की उम्मीद है, जिससे बैंक, डाक, परिवहन जैसे प्रमुख क्षेत्रों में कामकाज प्रभावित हो सकता है. भारत में इससे पहले भी कई बार बंद का ऐलान किया जा चुका है. इसका इतिहास लंबा रहा है.

भारत में भारत बंद का नाम समय-समय पर चर्चा में आता रहता है. यह एक ऐसा विरोध प्रदर्शन है, जो न केवल विशिष्ट समूहों की मांगों को सामने लाता है, बल्कि पूरे देश का ध्यान आकर्षित करता है. चाहे वह किसानों की मांग हो, मजदूरों का आंदोलन हो, या कोई सामाजिक-राजनीतिक मुद्दा, भारत बंद एक प्रभावी तरीका बन गया है अपनी बात को सरकार और समाज तक पहुंचाने का. लेकिन क्या है भारत बंद? इसका इतिहास क्या है, और सबसे महत्वपूर्ण, क्या भारत का संविधान इसे वैधानिक मान्यता देता है?

भारत बंद क्या है?

भारत बंद एक सामूहिक विरोध का रूप है, जिसमें लोग अपने कार्य, व्यवसाय, और दैनिक गतिविधियों को एक निश्चित अवधि के लिए स्वेच्छा से बंद रखते हैं ताकि सरकार या समाज का ध्यान किसी विशेष मुद्दे की ओर आकर्षित किया जा सके. यह हड़ताल से अलग है, क्योंकि हड़ताल में केवल एक विशिष्ट समूह (जैसे मजदूर, कर्मचारी, या कोई संगठन) हिस्सा लेता है, जबकि भारत बंद में व्यापक जनसमूह शामिल होता है, जिसमें वे लोग भी हो सकते हैं जो सीधे तौर पर आंदोलन से नहीं जुड़े, लेकिन सहानुभूति या समर्थन के लिए इसमें भाग लेते हैं. यह बंद सड़कों पर जाम, दुकानों और बाजारों के बंद होने, और सामान्य जनजीवन के ठप होने के रूप में दिखाई देता है.

भारत बंद का इतिहास

भारत बंद के इतिहास के बारे में उतना लिखा नहीं गया है, लेकिन उपलब्ध जानकारी के अनुसार, इसका प्रारंभ औपनिवेशिक काल में देखा जा सकता है. कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार, भारत में पहला बड़ा बंद 1862 में हुआ था. उस समय भारत में ब्रिटिश शासन था और मजदूरों व किसानों का शोषण चरम पर था. इस दौरान, फैक्ट्री मजदूरों ने अंग्रेजों की नीतियों के खिलाफ हड़ताल का आह्वान किया, जिसे इतिहास में पहले भारत बंद के रूप में देखा जाता है. यह बंद मजदूरों के शोषण और अन्याय के खिलाफ एकजुटता का प्रतीक था.

इसके बाद, 1871 में हावड़ा रेलवे स्टेशन पर लगभग 1200 कर्मचारियों ने हड़ताल की थी, जिसमें उनकी मांग थी कि उनके कार्य के घंटों को घटाकर आठ घंटे किया जाए. यह हड़ताल भी अपने समय में महत्वपूर्ण थी, क्योंकि इसने श्रमिक अधिकारों की ओर ध्यान खींचा. स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भी, भारत बंद जैसे सामूहिक विरोधों का उपयोग हुआ. 1905 में बंगाल विभाजन के खिलाफ स्वदेशी आंदोलन में व्यापक स्तर पर विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार और दुकानों का बंद होना इसका उदाहरण है.

स्वतंत्रता के बाद, भारत बंद का स्वरूप और अधिक संगठित और व्यापक हुआ. 1980 और 1990 के दशक में विभिन्न ट्रेड यूनियनों, किसान संगठनों, और राजनीतिक दलों ने विभिन्न मुद्दों पर बंद का आह्वान किया. हाल के वर्षों में, 2020 और 2021 में किसान आंदोलनों के दौरान हुए भारत बंद ने देशव्यापी ध्यान आकर्षित किया. इन बंदों में किसानों ने कृषि कानूनों के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की, और लाखों लोग उनके समर्थन में सड़कों पर उतरे.

भारत बंद की संवैधानिक स्थिति

भारत बंद की संवैधानिक वैधता को लेकर सवाल अक्सर उठता है. क्या भारत का संविधान नागरिकों को बंद या हड़ताल का अधिकार देता है? इसका जवाब भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(सी) में मिलता है, जो नागरिकों को संगठन या यूनियन बनाने का मौलिक अधिकार देता है. सुप्रीम कोर्ट ने 1961 के कामेश्वर प्रसाद बनाम बिहार राज्य मामले में यह स्पष्ट किया कि इस अनुच्छेद की उदार व्याख्या के तहत ट्रेड यूनियनों को हड़ताल करने का अधिकार प्राप्त है.

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस जेएस खेहर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने एक अन्य मामले में कहा था कि हड़ताल कभी असंवैधानिक नहीं हो सकती. विरोध करने का एक मूल्यवान अधिकार है. इस आधार पर, भारत बंद को संवैधानिक रूप से वैध माना जा सकता है, बशर्ते यह शांतिपूर्ण हो और कानून-व्यवस्था को भंग न करे.

सुप्रीम कोर्ट ने बंद और हड़ताल के लिए कुछ दिशानिर्देश भी जारी किए हैं

- आयोजकों को बंद से पहले पुलिस से संपिन करना और शांति बनाए रखने का आश्वासन देना होगा.

- हड़ताल या बंद के दौरान हिंसक हथियारों (जैसे लाठी, ब्लेड) का उपयोग प्रतिबंधित है.

- अगर बंद के दौरान सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान होता है, तो आयोजकों से नुकसान की दोगुनी राशि जुर्माने के रूप में वसूली जा सकती है.