कोलकाता: पश्चिम बंगाल में वोटरों की संख्या में हुई भारी बढ़ोतरी को लेकर राजनीतिक घमासान तेज हो गया है. चुनाव आयोग द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार 2002 में राज्य में 4.158 करोड़ रजिस्टर्ड वोटर थे जो अब बढ़कर 7.63 करोड़ हो चुके हैं. यह बढ़ोतरी लगभग 66 फीसदी बैठती है. सबसे अहम बात यह है कि जहां सबसे ज्यादा इजाफा हुआ है उन 10 में से 9 जिले बांग्लादेश की सीमा से लगे हुए हैं.
इस आंकड़े ने भाजपा और तृणमूल कांग्रेस के बीच नई राजनीतिक बहस को जन्म दे दिया है. 2002 में आखिरी बार स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन यानी एसआईआर हुई थी और उसके बाद अब तक वोटर संख्या में तेज बढ़ोतरी दर्ज की गई है.
उत्तर दिनाजपुर, मालदा, मुर्शिदाबाद, दक्षिण 24 परगना, जलपाईगुड़ी, कूच बिहार, उत्तर 24 परगना, नदिया और दक्षिण दिनाजपुर ऐसे जिले हैं जहां वोटरों की संख्या में असामान्य इजाफा हुआ है. बीरभूम में भी 73.4 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है. इसके उलट कोलकाता एकमात्र ऐसा जिला है जहां इजाफा बहुत कम रहा है. 2002 में कोलकाता में 23,00,871 रजिस्टर्ड वोटर थे और 2025 में यह आंकड़ा सिर्फ थोड़ा बढ़कर 24,07,145 हुआ है.
भाजपा ने इन आंकड़ों को 'बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठ' का सबूत बताया है. भाजपा नेता राहुल सिन्हा ने कहा कि पार्टी वर्षों से चेतावनी देती आ रही है कि सीमा पर घुसपैठ बढ़ रही है और अब डेटा भी उसी ओर संकेत कर रहा है. उनका कहना है कि सीमा से सटे कई जिले भविष्य में मुस्लिम बहुल हो सकते हैं और इसकी बड़ी वजह घुसपैठ है.
वहीं तृणमूल कांग्रेस ने भाजपा के आरोपों को पूरी तरह झूठा करार दिया है. टीएमसी प्रवक्ता अरूप चक्रवर्ती ने कहा कि बांग्लादेश में हिंदू आबादी 8 फीसदी तक गिर गई है और बड़ी संख्या में हिंदू शरणार्थी पश्चिम बंगाल आए हैं. उन्होंने कहा कि भाजपा मुस्लिम घुसपैठ का गलत नैरेटिव तैयार कर रही है जबकि वास्तविकता यह है कि हिंदू शरणार्थियों का प्रवाह बढ़ा है. चक्रवर्ती ने यह भी कहा कि कई ऐसे जिले जहां भाजपा ने भारी वोट हासिल किए हैं वहां भी वोटर संख्या में बढ़ोतरी हुई है.
सीपीएम ने भी इस मुद्दे पर अपनी राय रखी है. राज्य अध्यक्ष एम डी सलीम का कहना है कि बांग्लादेश फैक्टर जरूर है लेकिन सीमाई इलाकों में बीएसएफ को निगरानी और मजबूत करनी चाहिए थी. उन्होंने यह भी कहा कि हिंदू शरणार्थियों की संख्या बढ़ना बांग्लादेश में हिंदू आबादी कम होने का कारण है. कोलकाता में कम बढ़ोतरी पर उन्होंने कहा कि लेफ्ट सरकार के समय छोटे शहरी केंद्रों को विकसित किया गया था जिससे लोग सीधे कोलकाता की बजाय छोटे शहरों में बस गए.