नई दिल्ली में गुरुवार को लोकसभा ने भारी हंगामे के बीच ‘विकसित भारत गारंटी फॉर रोजगार एंड आजीविका मिशन (ग्रामीण) विधेयक’ पारित कर दिया. यह कानून 20 साल पुराने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम की जगह लेगा.
सरकार का दावा है कि इससे गांव आत्मनिर्भर बनेंगे, जबकि विपक्ष इसे गांधी की विरासत पर हमला बता रहा है. विधेयक पर चर्चा के दौरान सदन में बार-बार व्यवधान हुआ और अंततः कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी.
नया विधेयक हर ग्रामीण परिवार को एक वित्तीय वर्ष में 125 दिन के अकुशल श्रम आधारित रोजगार की वैधानिक गारंटी देता है. इसके लिए परिवार के वयस्क सदस्यों को स्वेच्छा से काम के लिए आगे आना होगा. सरकार का कहना है कि यह ढांचा रोजगार के साथ आजीविका के अवसर बढ़ाएगा. कानून लागू होने के छह महीने के भीतर राज्यों को इसके अनुरूप अपनी योजनाएं बनानी होंगी, ताकि जमीनी स्तर पर काम शुरू हो सके.
ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने विधेयक पेश करते हुए कहा कि इसका मकसद महात्मा गांधी के आत्मनिर्भर गांवों के सपने को पूरा करना है. उनके मुताबिक यह कानून गांवों को गरीबी से बाहर निकालने, आधारभूत ढांचे को मजबूत करने और विकास की रफ्तार बढ़ाने में मदद करेगा. सरकार का दावा है कि नया मिशन केवल मजदूरी तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को टिकाऊ दिशा देगा.
विपक्षी दलों ने मनरेगा को हटाने और नाम बदलने पर कड़ा एतराज जताया. तृणमूल कांग्रेस की महुआ मोइत्रा ने इसे गांधी की विरासत को कमजोर करने वाला कदम बताया. उन्होंने कहा कि कानून का नाम बदलना रामराज्य की भावना के विपरीत है. कांग्रेस सांसद जय प्रकाश ने इसे 'गरीब-विरोधी' करार देते हुए आरोप लगाया कि इससे राज्यों पर नया वित्तीय बोझ पड़ेगा और ग्राम सभाओं की भूमिका कमजोर होगी.
भाजपा सांसद बृजमोहन अग्रवाल ने विपक्ष के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि पूर्ववर्ती सरकारों के दौर में मनरेगा केवल औपचारिक काम बनकर रह गया था. उन्होंने आरोप लगाया कि इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था मजबूत नहीं हुई और भ्रष्टाचार बढ़ा. उनके अनुसार नए कानून में ‘राम’ का संदर्भ ईमानदारी और जवाबदेही का प्रतीक है, जो गलत प्रथाओं पर लगाम लगाएगा.
विधेयक के पारित होने के बाद अब इसकी असली परीक्षा क्रियान्वयन में होगी. राज्यों की तैयारी, वित्तीय प्रबंधन और स्थानीय संस्थाओं की भागीदारी इस योजना की सफलता तय करेगी. समर्थक इसे विकसित भारत की दिशा में बड़ा कदम मान रहे हैं, जबकि आलोचक आशंकित हैं कि रोजगार सुरक्षा का पुराना भरोसा टूट सकता है. आने वाले महीनों में गांवों पर इसका वास्तविक प्रभाव स्पष्ट होगा.