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'पद पर बनी रहेंगी विंग कमांडर...,' सुप्रीम कोर्ट ने निकिता पांडे को दी बड़ी राहत!

सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय अ विंग कमांडर निकेता पांडे की याचिका पर सुनवाई की. जहां वह 2011 में एसएससी के माध्यम से शामिल हुईं और 10 साल की सेवा के बाद 19 जून 2025 तक सेवा विस्तार प्राप्त किया गया.

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Edited By: Mayank Tiwari
Supreme Court
Courtesy: Social Media

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (22 मई) को भारतीय वायुसेना (आईएएफ) की शॉर्ट सर्विस कमीशन (एसएससी) अधिकारी विंग कमांडर निकिता पांडे की रिहाई पर रोक लगा दी. दरअसल, पांडे ने ऑपरेशन सिंदूर और ऑपरेशन बालाकोट में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. कोर्ट ने कहा कि सशस्त्र बलों के अधिकारियों में 10 साल की सेवा के बाद स्थायी कमीशन को लेकर अनिश्चितता ठीक नहीं है और इसे दूर करने के लिए उपयुक्त नीति लाई जानी चाहिए.

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस सूर्य कांत की अध्यक्षता वाली बेंच, जिसमें जस्टिस एन कोटिस्वर सिंह भी शामिल थे, उन्होंने इस मामले में सुनवाई की. जहां  विंग कमांडर निकिता पांडे की याचिका पर विचार करते हुए कोर्ट ने उनकी रिहाई पर रोक लगाई, ताकि विशेष चयन बोर्ड उनके स्थायी कमीशन के मामले पर विचार कर सके. 

निकिता पांडे का योगदान और याचिका

विंग कमांडर निकिता पांडे ने 2011 में एसएससी के माध्यम से वायुसेना में प्रवेश किया था. अपनी मेधा के आधार पर, उनकी सेवा को 10 साल पूरे होने पर 19 जून, 2025 तक बढ़ाया गया. ऑपरेशन सिंदूर और बालाकोट में उनकी रणनीतिक भूमिका को देखते हुए, पांडे ने सुप्रीम कोर्ट से अपनी रिहाई पर रोक लगाने और स्थायी कमीशन के लिए विचार करने की मांग की. वह भारतीय वायुसेना की पहली एसएससी अधिकारी हैं, जिनकी रिहाई पर कोर्ट ने रोक लगाई है. हालांकि, इससे पहले, 9 मई को सुप्रीम कोर्ट ने 50 से अधिक सेना की महिला एसएससी अधिकारियों की रिहाई पर भी इसी तरह का आदेश पारित किया था.

कोर्ट की टिप्पणी: नीति में बदलाव की जरूरत

जस्टिस सूर्य कांत ने कहा, "ये अधिकारी राष्ट्र के लिए महत्वपूर्ण संपत्ति हैं. केंद्र सरकार को ऐसी नीति लानी चाहिए, जिसमें सभी एसएससी अधिकारियों को योग्यता के आधार पर स्थायी कमीशन का अवसर मिले." कोर्ट ने इस बात पर चिंता जताई कि महिला एसएससी अधिकारियों के लिए स्थायी कमीशन की कोई निश्चित संभावना नहीं होने से उनके बीच अनावश्यक प्रतिस्पर्धा बढ़ती है. बेंच ने कहा, "भविष्य में सरकार ऐसी नीति बनाए, जिसमें केवल उतने ही एसएससी अधिकारी लिए जाएं, जितनों को स्थायी कमीशन दिया जा सकता हो. सभी को योग्यता के आधार पर अवसर मिलना चाहिए, भले ही सभी अर्हता प्राप्त न करें. यह अंतर-प्रतिस्पर्धा और मेरिट की दौड़ अधिकारियों में असंतोष पैदा करती है."

केंद्र सरकार और वायुसेना ने रखा अपना पक्ष

केंद्र और वायुसेना की ओर से पेश हुईं अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) ऐश्वर्या भाटी ने कोर्ट को बताया कि वायुसेना को युवा अधिकारियों की जरूरत है. उन्होंने कहा कि सेना में 2020 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद महिलाओं को पुरुषों के समान स्थायी कमीशन मिलना शुरू हुआ, लेकिन वायुसेना ने यह नीति एक दशक पहले ही लागू कर दी थी. भाटी ने यह भी बताया कि पांडे का मामला दो चयन बोर्डों द्वारा विचार किया गया, लेकिन उन्हें अयोग्य पाया गया.

पांडे का तर्क: लैंगिक समानता का अभाव

वरिष्ठ अधिवक्ता मेनका गुरुस्वामी और अधिवक्ता आस्था शर्मा द्वारा प्रतिनिधित्व की गईं पांडे ने अपनी याचिका में कहा, "1992 से भारतीय वायुसेना में महिलाओं को शामिल किया जा रहा है, फिर भी उन्हें केवल एसएससी के माध्यम से प्रवेश का विकल्प दिया जाता है, जबकि पुरुष अधिकारियों को एसएससी और स्थायी कमीशन दोनों का विकल्प मिलता है." उन्होंने इसे समानता के सिद्धांत और सुप्रीम कोर्ट के कानून के खिलाफ बताया. पांडे ने कहा, "समय बदल गया है. बेहतर बुनियादी ढांचे, उपकरणों और समर्पित महिला अधिकारियों के साथ, 30 साल पुरानी नीतियां अब उचित नहीं हैं. लैंगिक आधार पर स्थायी कमीशन से वंचित करना अनुचित है.

तीसरे चयन बोर्ड पर चिंता

विंग कमांडर निकिता पांडे ने फाइटर कंट्रोलर के रूप में कड़ा प्रशिक्षण लिया है और दो चयन बोर्डों के समक्ष पेश हुई हैं. उनके पास तीसरे और अंतिम चयन बोर्ड में उपस्थित होने का एक और अवसर है. अपनी याचिका में उन्होंने कहा, "सीमित समय को देखते हुए, आशंका है कि तीसरा बोर्ड जल्दबाजी में आयोजित होगा और मुझे स्थायी कमीशन के लिए निष्पक्ष अवसर नहीं मिलेगा."