अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के भीतर समाजिक समता लाने के लिए दायर एक याचिका में सु्प्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट के 7 जजों की एक पीठ ने 6-1 से फैसला सुनाते हुए कहा है कि अनुसूचित जाति और जनजातियों का उप-वर्गीकरण, समुदाय में और पिछड़े लोगों को आरक्षण देने के लिए किया जा सकता है.
CJI DY चंद्रचूड़ ने फैसला सुनाते हुए कहा, '6 फैसले हैं. सभी प्रासंगिक हैं. बहुमत, साल 2004 के ईवी चिन्नाह जजमेंट को पलट रही है. इस फैसले में यह कहा गया था कि उपवर्गीकरण की इजाजत नहीं दी जा सकती है. जस्टिस बेला त्रिवेदी इस फैसले से सहमत नहीं हैं.'
7 जजों की संवैधानिक बेंच ने उप वर्गीकरण के फैसले को सही ठहराया है. जस्टिस ईवी चिन्नाह बनाम आंध्र प्रदेश सरकार (2005) में यह तय किया गया था कि संविधान के अनुच्छेद 341 के तहत अनुसूचित जातियों के लिए उप वर्गीकरण नहीं किया जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को पलट दिया है.
- CJI चंद्रचूड़, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस बेला एम त्रिवेदी, जस्टिस पंकज मिथ, जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच ने तीन दिन की सुनवाई के बाद यह फैसला 8 फरवरी को ही सुरक्षित रख लिया था. कोर्ट ने कहा है कि उप-वर्गीकरण अनुच्छेद 14, 341 का उल्लंघन नहीं करता करता है.
- जस्टिस DY चंद्रचूड़ ने ऐतिहासिक साक्ष्यों का जिक्र करते हुए कहा कि सभी अनूसूचित जातियां, एक जैसी ही नहीं हैं. ऐसे में उप-वर्गीकरण संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत निहित समानता के सिद्धांत का उल्लंघन नहीं करता है. यह उप-वर्गीकरण संविधान के अनुच्छेद 341(2) का उल्लंघन भी नहीं करता है.
- अनुच्छेद 15 और 16 में ऐसा कुछ भी नहीं है जो राज्य को किसी जाति को उप-वर्गीकृत करने से रोकता हो. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सब-क्लासिफिकेशन न्यायोचित हो और राजनीतिक मंशा से न लिया गया हो. यह फैसला, न्यायिक पुनर्विचार के अंतर्गत आएगा.