सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस सूर्य कांत ने शनिवार को न्यायिक नियुक्तियों की कॉलेजियम सिस्टम का जोरदार समर्थन किया. सिएटल विश्वविद्यालय में 'द क्वाइट सेंटिनल: कोर्ट्स, डेमोक्रेसी, एंड द डायलॉग एक्रॉस बॉर्डर्स' विषय पर बोलते हुए उन्होंने कहा, “अपनी कमियों के बावजूद, यह प्रणाली न्यायपालिका की स्वायत्तता को संरक्षित करने वाला एक महत्वपूर्ण संस्थागत रक्षक है.” उन्होंने बताया कि कॉलेजियम कार्यपालिका और विधायिका के हस्तक्षेप को सीमित करता है, जिससे जजों को बाहरी दबावों से बचाकर उनकी निष्पक्षता बनी रहती है.
पारदर्शिता और जवाबदेही
जस्टिस कांत ने स्वीकार किया कि कॉलेजियम की प्रक्रिया की अपारदर्शिता और स्पष्ट मानदंडों की कमी के लिए आलोचना होती रही है. हालांकि, उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट हाल के प्रयासों से पारदर्शिता और जनता के विश्वास को बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है. 4 जून को अपने संबोधन में उन्होंने सवाल उठाया, “न्यायालय नीति निर्माण में कहां तक जा सकते हैं?” और “क्या न्यायिक रचनात्मकता एक गुण है या दोष?” उन्होंने जवाब दिया, “मुझे लगता है कि इसका उत्तर इरादे और अखंडता में है. जब न्यायालय संवैधानिक मूल्यों के आधार पर कमजोरों को सशक्त करते हैं, तो वे लोकतंत्र को कमजोर नहीं, बल्कि गहरा करते हैं.”
न्यायपालिका की भूमिका
जस्टिस कांत ने न्यायपालिका को “संवैधानिक नैतिकता का प्रहरी” बताया और कहा, “यह भारत के लोकतंत्र की नैतिक रीढ़ को आकार देने में महत्वपूर्ण रही है.” उन्होंने आपातकाल के दौरान न्यायपालिका की चुनौतियों का जिक्र करते हुए कहा कि उस दौर की कमजोरियों ने बाद में नई चेतना को जन्म दिया. उन्होंने जोर देकर कहा, “लोकतंत्र में, जहां बहुसंख्यकों को नियंत्रित और अल्पसंख्यकों को संरक्षित किया जाता है, न्यायालय केवल रेफरी नहीं हो सकते.”
प्रौद्योगिकी और नैतिकता
6 जून को माइक्रोसॉफ्ट मुख्यालय में एक चर्चा के दौरान जस्टिस कांत ने कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) के उपयोग पर कहा, “AI पर विचार एक गहरे नैतिक दिशासूचक के मार्गदर्शन में होना चाहिए. पारदर्शिता, समानता, जिम्मेदारी और मानवीय गरिमा इसके आधार होने चाहिए.” उन्होंने चेतावनी दी, “अनियंत्रित तकनीक सामाजिक असमानताओं को बढ़ा सकती है. AI कभी भी मानवीय तत्व की जगह नहीं ले सकता, जो न्याय के सिद्धांतों पर आधारित है.”