नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को महाराष्ट्र सरकार को कड़े शब्दों में चेतावनी देते हुए कहा कि राज्य में अगले महीने होने वाले स्थानीय निकाय चुनावों में आरक्षण की सीमा किसी भी स्थिति में 50 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए. अदालत ने साफ कहा कि यदि आरक्षण सीमा का उल्लंघन किया गया, तो वह चुनाव प्रक्रिया को रोकने में भी पीछे नहीं हटेगी.
जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली दो-न्यायाधीशों की पीठ ने यह टिप्पणी तब की, जब मामले की सुनवाई के दौरान महाराष्ट्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता पेश हुए. जस्टिस सूर्यकांत जल्द ही देश के अगले मुख्य न्यायाधीश बनने वाले हैं. उनके साथ पीठ में जस्टिस जॉयमाल्या बागची भी शामिल थे.
अदालत ने स्पष्ट किया कि स्थानीय निकाय चुनाव 2022 में बनी जे. के. बांठिया आयोग की रिपोर्ट लागू होने से पहले की स्थिति के अनुसार ही कराए जा सकते हैं. बांठिया आयोग ने ओबीसी वर्ग के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण की सिफारिश की थी, लेकिन यह रिपोर्ट अभी भी न्यायालय में विचाराधीन है. सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाया कि आयोग की रिपोर्ट पर जब अंतिम निर्णय ही नहीं हुआ है, तो उस आधार पर आरक्षण बढ़ाने का कोई औचित्य नहीं है.
महाराष्ट्र सरकार की ओर से सुनवाई को आगे बढ़ाने का अनुरोध स्वीकार करते हुए न्यायालय ने अगली तारीख 19 नवंबर तय की, लेकिन साथ ही कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि राज्य को किसी भी हालत में 50 प्रतिशत की सीमा पार नहीं करनी चाहिए. पीठ ने चेतावनी देते हुए कहा, 'अगर तर्क यह दिया जा रहा है कि नामांकन प्रक्रिया शुरू हो चुकी है इसलिए अदालत को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए, तो हम चुनाव पर ही रोक लगा देंगे. अदालत की शक्तियों को चुनौती न दें.'
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि संविधान पीठ द्वारा निर्धारित 50 प्रतिशत आरक्षण सीमा को पार करना किसी भी तरह से स्वीकार्य नहीं है. अदालत ने उन याचिकाओं पर भी नोटिस जारी किया जिनमें दावा किया गया था कि महाराष्ट्र के कुछ स्थानीय निकायों में कुल आरक्षण 70 प्रतिशत तक पहुँच गया है, जो संविधान के खिलाफ है.
सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि नामांकन दाखिल करने की अंतिम तिथि सोमवार है और अदालत को 6 मई को दिए गए अपने पिछले आदेश का ध्यान रखना चाहिए. इस पर जस्टिस बागची ने कहा कि अदालत पहले ही संकेत दे चुकी थी कि बांठिया रिपोर्ट लागू होने से पहले वाली स्थिति कायम रहनी चाहिए, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि सभी के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण स्वतः लागू हो जाए. पीठ ने कहा कि ऐसा होने पर अदालत के पिछले आदेशों में विरोधाभास पैदा हो जाएगा, जो न्यायिक प्रक्रिया के विरुद्ध है.
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद महाराष्ट्र सरकार और राज्य चुनाव आयोग के सामने चुनौती है कि वे संविधान के निर्धारित ढांचे के अनुरूप चुनाव प्रक्रिया को आगे बढ़ाएं. चुनावों से पहले आरक्षण व्यवस्था पर यह कानूनी और राजनीतिक बहस आने वाले दिनों में और तेज होने की संभावना है.