कश्मीर में शब-ए-बारात, जिसे मुसलमानों द्वारा पुण्य और माफी की रात माना जाता है, इस साल भी श्रद्धा और आस्था के साथ मनाई गई. यह रात रमजान माह से पहले आती है और इसे विशेष रूप से दुआ और प्रार्थना के लिए माना जाता है. हालांकि, श्रीनगर की ऐतिहासिक जामा मस्जिद में इस बार सुरक्षा कारणों से रात की नमाज आयोजित नहीं की जा सकी, जिससे श्रद्धालुओं को खासी निराशा का सामना करना पड़ा.
कश्मीर में शब-ए-बारात का पर्व धार्मिक श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया गया, हालांकि जामा मस्जिद में सुरक्षा कारणों से नमाज का आयोजन नहीं हो सका. इसके बावजूद, कश्मीर में अन्य मस्जिदों में लोग इस रात की विशेष नमाज अदा करने के लिए उमड़े और धार्मिक गतिविधियों में भाग लिया. इस रात को कश्मीर घाटी में एक खास धार्मिक महत्व प्राप्त है, और लोग इसे गुनाहों से मुक्ति और दुआ के लिए मनाते हैं.
इस्लामिक स्कॉलर और दिल्ली के फतेहपुरी मस्जिद के इमाम मुफ्ती मुकर्रम कहते हैं कि आमतौर पर लोग शब-ए-बारात कहते हैं, लेकिन सही मायने में इसे शब-ए-बराअत कहा जाना चाहिए. इनमें पहला शब्द ‘शब’ का मतलब रात है, दूसरा बराअत है जो दो शब्दों से मिलकर बना है, यहां ‘बरा’ का मतलब बरी किए जाने से है और ‘अत’ का अता किए जाने से, यानी यह (जहन्नुम से) बरी किए जाने या छुटकारे की रात होती है. इसीलिए शब-ए-बारात को इबादत, फजीलत, रहमत और मगफिरत की रात कहा जाता है.
श्रीनगर के जामा मस्जिद में इस साल सुरक्षा कारणों के चलते शब-ए-बारात की रात में विशेष नमाज का आयोजन नहीं किया जा सका. स्थानीय प्रशासन और सुरक्षा बलों ने कश्मीर घाटी में सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए इस फैसले को लिया. इससे मस्जिद में रात के समय नमाज अदा करने के इच्छुक हजारों श्रद्धालुओं को निराशा का सामना करना पड़ा. हालांकि, अन्य मस्जिदों में श्रद्धालुओं ने शब-ए-बारात की रात को नमाज अदा की और दुआओं में संलग्न रहे. जामा मस्जिद के बाहर, कश्मीर के अन्य हिस्सों में लोग शब-ए-बारात के मौके पर अपनी प्रार्थनाओं और इबादतों में लीन थे. मुस्लिम समुदाय के लोग घर-घर जाकर अपने परिवार के सदस्यों और दोस्तों के लिए दुआ करते रहे. साथ ही, मस्जिदों और घरों में खास तरह की रोशनी और सजावट की गई थी, जिससे शब-ए-बारात के महत्व को और भी महसूस किया जा रहा था.
कश्मीर में शब-ए-बारात का पर्व धार्मिक श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया गया, हालांकि जामा मस्जिद में सुरक्षा कारणों से नमाज का आयोजन नहीं हो सका. इसके बावजूद, कश्मीर में अन्य मस्जिदों में लोग इस रात की विशेष नमाज अदा करने के लिए उमड़े और धार्मिक गतिविधियों में भाग लिया. इस रात को कश्मीर घाटी में एक खास धार्मिक महत्व प्राप्त है, और लोग इसे गुनाहों से मुक्ति और दुआ के लिए मनाते हैं.