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India Daily

हिंदू लड़की के साथ विवाह करने पर राज्य सरकार ने डाल दिया था जेल में, सुप्रीम कोर्ट ने दी जमानत

पिछले साल दिसंबर में एक हिंदू महिला से शादी के दो दिन बाद अमन सिद्दीकी के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई थी. उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता अधिनियम के तहत उन पर मामला दर्ज किया गया और उन्हें करीब छह महीने जेल में बिताने पड़े.

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Edited By: Mayank Tiwari
Supreme Court
Courtesy: Social Media

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड स्वतंत्रता धर्म अधिनियम के तहत दर्ज एक मामले में अमन सिद्दीकी नामक व्यक्ति को जमानत दे दी है. कोर्ट ने कहा कि राज्य को अंतरधार्मिक विवाह पर कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए, क्योंकि यह विवाह “दोनों पक्षों के माता-पिता की सहमति से” हुआ था. यह फैसला जस्टिस बी वी नागरथना और सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने 19 मई को सुनाया.

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, अमन सिद्दीकी को अपनी हिंदू पत्नी के साथ सहमति से विवाह करने के बाद लगभग छह महीने जेल में बिताने पड़े. यह विवाह 10 दिसंबर 2024 को दोनों परिवारों की स्वेच्छा से आयोजित किया गया था. 

छह महीने जेल में बिताने के बाद मिली राहत

वहीं, अमन सिद्दीकी के वकील ने सुप्रीम कोर्ट को बताया, “परिवारों ने स्वेच्छा से अपीलकर्ता और उनकी पत्नी का विवाह आयोजित करने का फैसला किया था. हालांकि, विवाह के तुरंत बाद कुछ व्यक्तियों और संगठनों ने इस पर आपत्ति जताई.” इसके परिणामस्वरूप, 12 दिसंबर 2024 को उत्तराखंड के रुद्रपुर पुलिस स्टेशन में सिद्दीकी के खिलाफ एक प्राथमिकी दर्ज की गई. सिद्दीकी के माता-पिता के खिलाफ भी मामला दर्ज किया गया, लेकिन उन्हें बाद में अग्रिम जमानत मिल गई.

सुप्रीम कोर्ट का फैसला

सिद्दीकी के वकील ने कोर्ट को आश्वासन दिया कि जमानत मिलने पर सिद्दीकी और उनकी पत्नी अपने परिवारों से अलग रहेंगे और “शांतिपूर्ण जीवन जिएंगे.” राज्य ने जमानत याचिका का विरोध किया, लेकिन पीठ ने अपने आदेश में दर्ज किया, “हम मानते हैं कि प्रतिवादी-राज्य को अपीलकर्ता और उनकी पत्नी के एक साथ रहने पर कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए, क्योंकि उनका विवाह उनके माता-पिता और परिवारों की सहमति से हुआ है. ऐसी परिस्थितियों में, हमें लगता है कि यह जमानत देने का उचित मामला है.”

विवाह के बाद हस्ताक्षरित समझौता

विवाह के अगले दिन, सिद्दीकी को उनकी पत्नी के चचेरे भाइयों ने एक समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिए कहा, जिसमें आश्वासन दिया गया कि वह अपनी पत्नी को “किसी भी प्रकार का शारीरिक या मानसिक नुकसान” नहीं पहुंचाएंगे और न ही उसे “किसी भी तरह से धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर” करेंगे. समझौते में यह भी कहा गया कि उनकी पत्नी “हिंदू धर्म का स्वतंत्र रूप से पालन करने और सभी हिंदू परंपराओं को पूर्ण स्वतंत्रता के साथ अपनाने” के लिए स्वतंत्र रहेगी, और सिद्दीकी उनके धार्मिक विश्वासों में हस्तक्षेप नहीं करेंगे.

उत्तराखंड हाई कोर्ट का फैसला

उत्तराखंड हाई कोर्ट ने 28 फरवरी को सिद्दीकी की जमानत याचिका खारिज कर दी थी. सिद्दीकी ने हाई कोर्ट में तर्क दिया था कि उनकी मां एक हिंदू हैं, जिन्होंने एक मुस्लिम पुरुष से विवाह किया और धर्म परिवर्तन नहीं किया. उन्होंने यह भी कहा कि वह अपनी मां के धर्म का पालन करते हैं, और उनके माता-पिता ने उनके लिए एक धागा समारोह भी आयोजित किया था.

सिद्दीकी के पिता ने अपनी संयुक्त परिवार से अलगाव कर लिया था ताकि उनकी मां “कुमाऊंनी हिंदू परिवार की रीति-रिवाजों को आराम से निभा सकें.” हालांकि, राज्य ने आरोप लगाया कि सिद्दीकी ने अपने पिता के धर्म को छिपाया. हाई कोर्ट ने अंततः जमानत देने से इनकार कर दिया.