लोकसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा नेहरू के एक पुराने पत्र का हवाला देने के बाद राजनीतिक बहस तेज हो गई है. पीएम का दावा था कि नेहरू ने वंदे मातरम के संदर्भ में जिन्ना की चिंताओं का समर्थन किया था. कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी ने तुरंत इस दावे को चुनौती देते हुए कहा कि प्रधानमंत्री ने पत्र के केवल कुछ हिस्से पढ़े, जबकि पूरा पत्र पढ़ने पर तस्वीर अलग दिखाई देती है. प्रियंका ने यह भी पूछा कि संविधान सभा में अपनाए गए दो पदों पर उस समय किसी ने आपत्ति क्यों नहीं की.
प्रियंका गांधी ने कहा कि प्रधानमंत्री ने नेहरू के 1937 में बोस को लिखे पत्र का अधूरा हवाला दिया. उन्होंने आरोप लगाया कि पीएम ने केवल वही हिस्सा चुना, जिससे उनका राजनीतिक तर्क मजबूत हो सके. उनके अनुसार, पत्र में नेहरू ने साफ कहा था कि अतिरिक्त आपत्तियां ‘सांप्रदायिक ताकतों’ ने गढ़ी थीं.
लोकसभा में पीएम मोदी ने दावा किया कि नेहरू ने जिन्ना की भावनाओं को मानते हुए बोस को लिखा था कि वंदे मातरम की पृष्ठभूमि मुसलमानों को भड़का सकती है. उन्होंने पत्र के अंश पढ़ते हुए कहा कि आनंदमठ से जुड़ाव मुस्लिम समुदाय को आहत कर सकता है.
प्रियंका गांधी ने पत्र का हवाला देते हुए कहा कि नेहरू का तर्क संदर्भ में था, लेकिन उसका गलत अर्थ निकाला गया. उन्होंने कहा कि पत्र में यह भी लिखा था कि असली विवाद बाद में ‘सांप्रदायिक समूहों’ ने जानबूझकर पैदा किया, जिसका जिक्र पीएम ने नहीं किया.
प्रियंका ने बताया कि संविधान सभा ने वंदे मातरम के केवल दो पद स्वीकार किए थे और उस बैठक में आंबेडकर तथा श्यामा प्रसाद मुखर्जी दोनों मौजूद थे. उन्होंने सवाल उठाया कि तब किसी ने आपत्ति क्यों नहीं जताई, जबकि आज विवाद को बढ़ाया जा रहा है.
कांग्रेस सांसद ने आरोप लगाया कि सरकार बार-बार नेहरू को घेरने की कोशिश कर रही है. उन्होंने चुनौती दी कि नेहरू की कथित ‘भूलों’ की सूची बनाई जाए और संसद में खुली बहस रखी जाए, ताकि जनता भी तथ्य साफ-साफ देख सके.