झारखंड के रांची में एक निजी अस्पताल ने मां को अपने नवजात से अगल कर दिया. मां अस्पताल का बिल जमा कराने में असमर्थ थी. जिसके बाद अस्पताल ने उसे बंधक बना लिया. अब इस मामले में झारखंड हाई कोर्ट ने शुक्रवार को स्वत: संज्ञान लिया है. दरअसल, बिल जमा नहीं करने पर जेनेटिक अस्पताल प्रबंधन ने एक महिला को नवजात से अलग कर बंधक बना लिया था.
जस्टिस आर मुखोपाध्याय व जस्टिस दीपक रोशन की अदालत ने संज्ञान लेते हुए स्वास्थ्य सचिव को मामले की जांच कर रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है. अदालत ने रांची के सिविल सर्जन को अस्पताल के निबंधन की जांच करने का भी निर्देश दिया है. मामले की अगली सुनवाई 18 जुलाई को होगी.
शुक्रवार को रिम्स से जुड़े मामले की सुनवाई के दौरान अदालत को मीडिया रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया गया कि जेनेटिक अस्पताल ने मरीज के साथ अमानवीय व्यवहार किया है. रनिया के बनावीरा नवाटोली निवासी सुनीता कुमारी को 28 मई को प्रसव पीड़ा होने पर खूंटी सदर अस्पताल ले जाया गया था. वहां से उसे रिम्स रेफर कर दिया गया, यहां आते ही एक ऑटो चालक ने महिला के पति मंगलू को झांसा देकर जेनेटिक अस्पताल ले गया, जहां महिला ने बच्चे को जन्म दिया. अस्पताल प्रबंधन ने मंगलू से चार लाख रुपये मांगे गए. मंगलू ने जमीन बेचकर दो लाख अस्पताल को दिए.
मंगलू बाकी के दो लाख नहीं दे सका तो अस्पताल प्रबंधन ने सुनीता को बंधक बना लिया था. बाद में सीआईडी की टीम ने 27 जून को सुनीता को अस्पताल से मुक्त कराया. कोर्ट को यह भी बताया गया कि जब अस्पताल प्रबंधन ने महिला के पति को नवजात शिशु के साथ घर भेज दिया तो उसने बकरी का दूध पिलाकर शिशु को जिंदा रखा. जब उसकी पत्नी अस्पताल से मुक्त होकर गुरुवार को घर पहुंची तो करीब 23 दिन के बाद बच्चे ने अपनी मां का दूध पिया.