दिल्ली के आबकारी नीति केस में दिल्ली के पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया को सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को जमानत दे दी. सुप्रीम कोर्ट ने 18 महीने बाद उनकी रिहाई के आदेश जारी किए हैं. बीते 18 महीनों से मनीष सिसोदिया, दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद थे. ट्रायल कोर्ट से लेकर हाई कोर्ट तक, उनकी जमानत याचिका बार-बार खारिज हुई है. दिल्ली की वापस ली गई आबकारी नीति में उन्हें ईडी ने मुख्य आरोपियों में से एक बताया है. जब यह नीति आई थी, तब मनीष सिसोदिया के पास ही आबकारी मंत्रालय था. कोर्ट ने उनकी जमानत याचिका पर मुहर लगा दी, अब वे जेल से बाहर आ जाएंगे.
मनीष सिसोदिया ने सुप्रीम कोर्ट में CBI और ED दोनों की गिरफ्तारी के खिलाफ जमानत याचिका की अर्जी दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने ट्रायल में हो रही देरी को देखते हुए इस पर फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'कोर्ट को लगता है कि 17 महीने तक जेल में रखने और मुकदमा न शुरू करने की वजह से अपीलकर्ता को त्वरित सुनवाई के हक से वंचित किया गया है.' सुप्रीम कोर्ट ने उन मामलों का जिक्र किया, जब फैसलों में कहा गया था कि जब जांच एजेंसियां जल्द ट्रायल नहीं करा सकती हैं तो वे अपराध की गंभीरता का हवाला देकर जमानत का विरोध भी नहीं कर सकती हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने यह माना है कि जल्द ट्रायल इस केस का नहीं हो सकता है क्योंकि 400 से ज्यादा गवाह हैं, हजारों दस्तावेज हैं, इसलिए भविष्य में भी इसके पूरे होने की संभावना नहीं दिखती है. मनीष सिसोदिया को ऐसी स्थिति में और ज्यादा दिनों तक जेल में रखना, मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है. यह उनकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता का भी अपमान है. ट्रायल कोर्ट और हाई कोर्ट ने न्याय में देरी की बात नहीं मानी है.
कोर्ट ने कहा है कि ट्रायल कोर्ट और हाई कोर्ट की ओर से कोई त्रुटि नहीं हुई है. मेरिट पर केस लड़ा गया है लेकिन उन्होंने ट्रायल में देरी पर गौर नहीं किया है. कोर्ट ने कहा है कि ट्रायल कोर्ट और हाई कोर्ट को अक्टूबर 2023 के सुप्रीम कोर्ट के जजमेंट को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए. ट्रायल को प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट की धारा 45 को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए.