तृणमूल कांग्रेस की नेता और सांसद महुआ मोइत्रा ने बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण के लिए भारत के चुनाव आयोग के आदेश को चुनौती देते हुए सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है. अपनी याचिका में मोइत्रा ने कहा कि वह 24 जून के आदेश को रद्द करने की मांग करती हैं जिसके तहत संविधान के विभिन्न प्रावधानों का कथित उल्लंघन करते हुए विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) किया जा रहा है.
मोइत्रा ने शीर्ष अदालत से भारत के चुनाव आयोग को देश के अन्य राज्यों में मतदाता सूचियों की एसआईआर के लिए इसी तरह के आदेश जारी करने से रोकने का निर्देश देने की मांग की. अधिवक्ता नेहा राठी के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है, "यह प्रस्तुत किया गया है कि यह देश में पहली बार है कि ईसीआई द्वारा इस तरह की कवायद की जा रही है, जहां उन मतदाताओं से, जिनके नाम पहले से ही मतदाता सूची में हैं और जो पहले भी कई बार मतदान कर चुके हैं, अपनी पात्रता साबित करने के लिए कहा जा रहा है."
याचिका में कहा गया है कि आक्षेपित एसआईआर आदेश के तहत मतदाता का नाम मतदाता सूची में शामिल करने या बनाए रखने के लिए नागरिकता संबंधी दस्तावेज प्रस्तुत करने की आवश्यकता होती है, जिसमें माता-पिता में से किसी एक या दोनों की नागरिकता का प्रमाण शामिल है, ऐसा न करने पर मतदाता को बाहर किए जाने का जोखिम होता है. यह आवश्यकता अनुच्छेद 326 के विपरीत है और इसमें ऐसी बाहरी योग्यताएं शामिल हैं, जो संविधान और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 में शामिल नहीं हैं."
इसी प्रकार की एक याचिका एनजीओ एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स द्वारा भी दायर की गई है, जिसमें बिहार में मतदाता सूचियों की एसआईआर के लिए चुनाव आयोग के निर्देश को चुनौती दी गई है. चुनाव आयोग ने 24 जून को बिहार में एसआईआर करने के निर्देश जारी किए थे, जिसका उद्देश्य अपात्र नामों को हटाना तथा यह सुनिश्चित करना था कि केवल पात्र नागरिकों को ही मतदाता सूची में शामिल किया जाए.
बिहार में इस वर्ष के अंत में चुनाव होने हैं. एनजीओ ने आदेश और पत्र को रद्द करने की भी मांग की है, जिसमें तर्क दिया गया है कि यह संविधान के अनुच्छेद 14, 19, 21, 325 और 326 के साथ-साथ जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 और मतदाता पंजीकरण नियम, 1960 के नियम 21ए का उल्लंघन करता है.
अधिवक्ता प्रशांत भूषण के माध्यम से दायर एनजीओ की याचिका में कहा गया है कि चुनाव आयोग का आदेश "मनमाने ढंग से और बिना उचित प्रक्रिया के" लाखों मतदाताओं को मताधिकार से वंचित कर सकता है तथा स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव को बाधित कर सकता है. याचिका में कहा गया है, "निर्देश की दस्तावेजीकरण आवश्यकताओं, उचित प्रक्रिया की कमी और बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण के लिए अनुचित रूप से कम समयसीमा के कारण इस अभ्यास के परिणामस्वरूप लाखों वास्तविक मतदाताओं के नाम मतदाता सूची से हटा दिए जाएंगे, जिससे वे मताधिकार से वंचित हो जाएंगे."
बिहार में ऐसा अंतिम पुनरीक्षण 2003 में किया गया था. चुनाव आयोग के अनुसार, तेजी से हो रहे शहरीकरण, लगातार हो रहे प्रवास, युवा नागरिकों के मतदान के लिए पात्र होने, मौतों की सूचना न देने तथा विदेशी अवैध आप्रवासियों के नाम सूची में शामिल होने के कारण यह प्रक्रिया आवश्यक हो गई थी. आयोग ने कहा कि इस प्रक्रिया से वह मतदाता सूचियों की सत्यनिष्ठा और त्रुटिरहित तैयारी सुनिश्चित करना चाहता है. एसआईआर का संचालन बूथ अधिकारियों द्वारा किया जा रहा है, जो सत्यापन के लिए घर-घर सर्वेक्षण कर रहे हैं.