नई दिल्ली: देश के उच्चतम न्यायालय के 53वें मुख्य न्यायाधीश (CJI) के रूप में जस्टिस सूर्यकांत ने आज सोमवार को पद एवं गोपनीयता की शपथ ली. राष्ट्रपति भवन में आयोजित एक सादे लेकिन गरिमापूर्ण समारोह में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें हिंदी में शपथ दिलाई. इससे पहले 30 अक्टूबर को केंद्र सरकार ने उनके नाम की आधिकारिक घोषणा की थी.
मूल रूप से हरियाणा के रहनेवाले जस्टिस सूर्यकांत 10 फरवरी 2027 को सेवानिवृत्ति की आयु प्राप्त करेंगे. इस तरह वह लगभग 15 महीने तक देश की सर्वोच्च अदालत का नेतृत्व करेंगे. अपनी स्पष्टवादिता और सख्त प्रशासनिक दृष्टिकोण के लिए पहचाने जाने वाले जस्टिस सूर्यकांत अब सुप्रीम कोर्ट के कामकाज और न्यायिक प्रक्रियाओं को नई दिशा देने की तैयारी में हैं.
पदभार संभालते ही जस्टिस सूर्यकांत ने तीन-न्यायाधीशों की पीठ की अध्यक्षता करते हुए केसों की लिस्टिंग प्रक्रिया को लेकर नाराजगी जाहिर की. उन्होंने कहा कि कई वकील बिना प्रक्रिया का पालन किए मामलों को उसी दिन सूचीबद्ध करने का अनुरोध कर देते हैं, जो अदालत की व्यवस्था के खिलाफ है.
उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि किसी भी मामले को मेंशन कर उसी दिन सूचीबद्ध करने की आदत को स्वीकार नहीं किया जा सकता. मौत की सजा या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जैसे अत्यावश्यक मामलों को छोड़कर बाकी सभी में निर्धारित प्रक्रिया का पालन जरूरी है.
सुनवाई के दौरान एक वकील ने कैंटीन गिराए जाने से जुड़े मामले को अर्जेंट आधार पर लिस्ट करने की मांग की. जस्टिस सूर्यकांत ने इस अनुरोध को अस्वीकार करते हुए कहा कि अर्जेंट मामलों में भी मेंशनिंग स्लिप के जरिए लिखित रूप में कारण बताना अनिवार्य होगा. उन्होंने कहा कि जब तक कोई अत्यधिक विशेष परिस्थिति न हो, किसी की स्वतंत्रता दांव पर हो या मौत की सजा का मामला हो, सुनवाई तुरंत नहीं की जाएगी. बाकी सभी मामलों में रजिस्ट्री कारणों का आकलन कर ही लिस्टिंग करेगी.
10 फरवरी 1962 को हरियाणा के हिसार जिले में जन्मे जस्टिस सूर्यकांत एक मध्यमवर्गीय परिवार से आते हैं. छोटे शहर से वकालत का सफर शुरू करके उन्होंने देश के कई महत्वपूर्ण संवैधानिक मामलों में अपनी न्यायिक दृष्टि का प्रभाव छोड़ा.
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से कानून में स्नातकोत्तर में उन्होंने प्रथम श्रेणी में प्रथम स्थान प्राप्त किया. पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में उनकी न्यायिक कार्यशैली की व्यापक सराहना हुई. इसके बाद 2018 में उन्हें हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया.