Jammu Kashmir Assembly Elections: जम्मू से कठुआ तक और राजौरी से डोडा तक, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर वाले बड़े-बड़े होर्डिंग आपको दिख जाएंगे. इन होर्डिंग्स में 2014 से पहले और उसके बाद जम्मू संभाग की स्थिति के बीच आए अंतर को दिखाते हैं. कुछ होर्डिंग्स में दावा किया गया है कि 2014 से पहले अशांति थी और अब शांति है. कुछ पोस्टर्स में दावा किया गया है कि 2014 के पहले डर का माहौल था, जिसकी जगह अब निडरता ने ले ली है.
2014 के विधानसभा चुनावों में जम्मू क्षेत्र में (तब 37 सीटों में से) 25 सीटें जीतकर इतिहास रचने वाली भाजपा 10 साल बाद हो रहे मौजूदा जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनावों में अपने प्रदर्शन को दोहराने या उससे बेहतर करने के लिए हरसंभव कोशिश कर रही है. एक बार फिर मोदी की लोकप्रियता पर भरोसा करते हुए पार्टी कश्मीर घाटी से भी कुछ मदद की उम्मीद कर रही है.
भाजपा ने अपने कई सीनियर नेताओं और पूर्व विधायकों को टिकट देने से इनकार करने का अभूतपूर्व कदम उठाया है, जिनमें पूर्व उपमुख्यमंत्री निर्मल सिंह और कविन्द्र गुप्ता के अलावा सत शर्मा भी शामिल हैं.
जमीनी स्तर पर, लोगों के बीच महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दे गूंज रहे हैं, जिनमें से कुछ लोग भाजपा के कई पूर्व विधायकों के प्रदर्शन में कमी की भी बात कर रहे हैं, लेकिन पार्टी नेताओं का दावा है कि प्रत्येक बीतते दिन के साथ स्थिति उनके पक्ष में बदल रही है.
एक जिला भाजपा अध्यक्ष कहते हैं कि छह महीने पहले हम 10 सीटें भी जीतने की स्थिति में नहीं थे, लेकिन अब स्थिति बदल रही है. घाटी में क्या हो रहा है, इसे देखिए. उनका कहना है कि भाजपा घाटी में हुए घटनाक्रम के जवाब में जम्मू में हिंदू वोटों के एकजुट होने की उम्मीद कर रही है.
वे कहते हैं कि इंजीनियर रशीद और जमात-ए-इस्लामी जैसे अलगाववादी तत्वों को अपनी शर्तें थोपने की अनुमति नहीं दी जा सकती. मुझे लगता है कि जम्मू के लोग यह जानते हैं. लेकिन यह दोधारी तलवार है. कांग्रेस के एक नेता कहते हैं कि जम्मू के लोग घाटी में जो कुछ हो रहा है, उस पर करीब से नज़र रख रहे हैं. केवल कांग्रेस-नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) गठबंधन ही घाटी को कट्टरपंथी ताकतों के हाथों में जाने से रोक सकता है.
डोडा में छात्र रजत कहते हैं कि अब इंजीनियर राशिद , जो जेल में थे, ने कश्मीर में अपने उम्मीदवार खड़े कर दिए हैं. कहा जा रहा है कि जमात भी (घाटी की कई सीटों पर) चुनाव लड़ रही है. अगर वे सभी अपनी सीटें जीत गए तो जम्मू का क्या होगा?
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, जम्मू यूनिवर्सिटी के एक मुस्लिम छात्र ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि हर कोई कश्मीर को कवर कर रहा है, लेकिन चर्चा सिर्फ़ कश्मीर के बारे में है. अगर आप जम्मू के बारे में लिखेंगे तो यह हमारे लिए फ़ायदेमंद होगा. उनके दोस्त, जो एबीवीपी के कार्यकर्ता हैं, इस बात से सहमत हैं, लेकिन बताते हैं कि उनके राजनीतिक जुड़ाव के बारे में सब जानते हैं. जैसा कि उनकी पार्टी भाजपा की लाइन है, उनका ध्यान इस बात पर है कि अगस्त 2019 में भाजपा शासित केंद्र द्वारा अनुच्छेद 370 और 35 ए को निरस्त करने से राज्य को कैसे लाभ हुआ है?
हालांकि, अपने धर्म से इतर, छात्र दरबार मूव (सर्दियों के दौरान छह महीने के लिए सत्ता की सीट जम्मू में स्थानांतरित करना और निरस्तीकरण कदम के मद्देनजर गर्मियों में इसे वापस श्रीनगर ले जाना) को खत्म करने से नाराज हैं, उनका तर्क है कि इससे व्यापार और व्यापार प्रभावित हुआ है. वे इस बात से भी सहमत हैं कि केंद्र सरकार के लंबे शासन के बाद जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्र की वापसी एक स्वागत योग्य कदम है.
डोडा के एक छात्र ने कहा कि पहले अगर लोगों को कोई समस्या होती थी तो वे किसी मंत्री या स्थानीय विधायक के पास जा सकते थे. अब वे नौकरशाहों के पीछे भाग रहे हैं जो उनकी बात नहीं सुनते. बाबू राज में लोग हमेशा परेशान रहते हैं. एक अन्य छात्र ने सहमति जताते हुए कहा कि यहां तक कि डीडीसी ने भी बहुत मदद नहीं की है. डीडीसी के अधिकांश सदस्य स्थानीय प्रभावशाली परिवारों से हैं, जिनकी नौकरशाहों से सांठगांठ है.
जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा बहाल करने की बात पर युवा बंटे हुए हैं. जम्मू विश्वविद्यालय में अंग्रेजी में एमए कर रही कोमल कहती हैं कि हम केंद्र के शासन से खुश हैं. अगर राज्य का दर्जा बहाल हो जाता है, तो कश्मीर के राजनेता फिर से शासन करेंगे. वह आगे कहती हैं कि केंद्र सरकार की हर योजना अब जम्मू-कश्मीर में लागू की जाती है. आप यकीन नहीं करेंगे. मैं एक योजना के बारे में सुनती हूं...एक महीने के भीतर मैं देखती हूं कि डोडा में लोग इसके लिए आवेदन करने के लिए कतार में लग जाते हैं. कठुआ, राजौरी और डोडा में भी ऐसा ही नजारा देखने को मिलता है.
कठुआ के सरकारी डिग्री कॉलेज के बाहर मनीष शर्मा नाम के छात्र इस बात से सहमत हैं. वे कहते हैं कि मुझे राज्य का दर्जा नहीं चाहिए. फिर हिंसा फिर से होगी. सेना की शक्ति छीन ली जाएगी. अब प्रधानमंत्री सीधे हस्तक्षेप कर सकते हैं.
कॉलेज में रसायन विज्ञान में स्नातक कर रहे सलीम अहमद पहली बार मतदान करने वाले हैं, लेकिन वे इससे सहमत नहीं हैं. वे कहते हैं कि उन्होंने हाल ही में हुए लोकसभा चुनाव में मतदान नहीं किया था, लेकिन इस बार मतदान करेंगे. अपनी इच्छा के बारे में पूछे जाने पर वे कहते हैं कि राज्य का दर्जा बहाल किया जाना चाहिए ताकि जम्मू-कश्मीर के पास निर्णय लेने की कुछ शक्ति हो. अब सभी निर्णय उपराज्यपाल द्वारा लिए जाते हैं. मुझे यकीन है कि जो भी सत्ता में आएगा, राज्य का दर्जा बहाल किया जाएगा. सुप्रीम कोर्ट ने भी इसकी मांग की थी.
2014 के चुनावों में पीडीपी को 28 सीटें मिली थीं, जबकि भाजपा को 25, एनसी को 15 और कांग्रेस को 12 सीटें मिली थीं. त्रिशंकु चुनाव परिणाम के कारण पीडीपी-भाजपा गठबंधन सरकार बनी, लेकिन जून 2018 में भाजपा ने इस पर रोक लगा दी. तब से जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश है.