नई दिल्ली: भारतीय राजनीति में 2025 एक ऐसा वर्ष साबित हुआ, जिसने हर महीने नई बहस और नया मोड़ दिया. चुनावी नतीजों से लेकर संसद के भीतर हुए टकराव, आर्थिक नीतियों से लेकर राष्ट्रीय सुरक्षा तक, हर मुद्दे ने जनचर्चा को दिशा दी. इस साल ने दिखाया कि सत्ता, विपक्ष और संस्थानों के बीच संतुलन कैसे बदलता है और लोकतंत्र किस तरह लगातार परीक्षा से गुजरता है.
2025 में दिल्ली विधानसभा चुनाव सबसे बड़ा राजनीतिक घटनाक्रम रहा. दो दशक से अधिक समय बाद भारतीय जनता पार्टी की सत्ता में वापसी ने राजधानी की राजनीति की धुरी बदल दी. वहीं बिहार विधानसभा चुनाव में भी कड़ा मुकाबला देखने को मिला. अंतत. नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले एनडीए ने कांग्रेस और राजद गठबंधन को पराजित कर राज्य में अपनी पकड़ मजबूत की.
स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन यानी SIR अभ्यास ने पूरे साल राजनीति को गर्माए रखा. विपक्ष ने मतदाता सूची में गड़बड़ी का आरोप लगाया और कई राज्यों में विरोध प्रदर्शन हुए. राहुल गांधी द्वारा लगाए गए कथित वोटर चोरी के आरोपों ने चुनाव आयोग और सरकार के बीच टकराव को और तेज कर दिया. यह मुद्दा संसद से लेकर सड़कों तक चर्चा में रहा.
बजट 2025 में 12 लाख रुपये तक की आय को टैक्स फ्री करने की घोषणा ने मध्यम वर्ग में बड़ी बहस छेड़ दी. संसद में कर नीति को लेकर पक्ष और विपक्ष आमने-सामने रहे. इसी साल SHANTI Act 2025, Repealing and Amending Bill 2025 और विकसित भारत रोजगार एवं आजीविका मिशन जैसे बड़े कानून पारित हुए, जिसने नीतिगत दिशा को नया आकार दिया.
कर्नाटक में मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार के बीच कथित सत्ता साझेदारी को लेकर अटकलें लगातार सुर्खियों में रहीं. वहीं महाराष्ट्र में ठाकरे चचेरे भाइयों का मिलन साल के सबसे चर्चित राजनीतिक पलों में शामिल रहा. इस घटनाक्रम को आगामी बीएमसी चुनावों से पहले राज्य की राजनीति के लिए निर्णायक माना गया.
पहलगाम आतंकी हमले के बाद शुरू हुए ऑपरेशन सिंदूर ने संसद के मानसून सत्र को गरमा दिया. पाकिस्तान और पीओके में आतंकी ठिकानों पर कार्रवाई को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच लंबी बहस हुई. प्रधानमंत्री और विपक्ष के नेता के भाषणों ने राष्ट्रीय सुरक्षा और कूटनीति पर नई बहस को जन्म दिया.