Hustle Culture: बेंगलुरु स्थित एक मोबाइल गेमिंग स्टार्टअप मैटिक्स के सह-संस्थापक मोहन कुमार के हालिया बयान ने सोशल मीडिया पर नई बहस छेड़ दी है. कुमार ने एक्स पर पोस्ट करते हुए बताया कि उनकी टीम सप्ताह में 6 दिन सुबह 10 बजे से रात 10 बजे तक काम करती है. इस ‘सख्त ऑफिस टाइमिंग’ के समर्थन में उन्होंने तर्क दिया कि भारत को अगर ग्लोबल स्तर पर कोई तकनीकी प्रोडक्ट बनाना है, तो यह समर्पण जरूरी है.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक मोहन कुमार ने कहा, “हमारे पास सुबह 10 बजे से रात 10 बजे तक और सप्ताह में 6 दिन का सख्त कार्यालय समय है. फिर भी, हमारी टीम के सदस्य 10 बजे के बाद और रविवार को भी काम करते हैं.”
Guys, chill, no one comes in at 10:00 am. We play poker and watch Netflix together in the office.
— Mohan is building @matiks_play (@themohment) July 6, 2025
We’re all fresh out of college, building our careers and lives from scratch.
No one’s just doing a job here, we’re all seniors and juniors working together on a project, giving it… https://t.co/ESWZ9BsqeN
उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि यह बात कई लोगों को खल सकती है, लेकिन उनका मानना है कि यह हसल कल्चर किसी भी ग्लोबल ब्रांड को भारत से खड़ा करने के लिए आवश्यक है. उन्होंने आगे कहा, “लोग आलोचना करेंगे, लेकिन अगर हमें भारत से पहला वैश्विक स्तर का तकनीकी उत्पाद बनाना है, तो सबको एकजुट होकर काम करना होगा. हमें नौकरी की मानसिकता से हटकर निर्माण की मानसिकता अपनानी होगी.”
कुमार की पोस्ट के बाद सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ गई. कई यूजर्स ने उनके विचारों को ‘शोषणकारी’ करार दिया, जबकि कुछ ने इसे ‘निर्माण संस्कृति’ के प्रतीक के रूप में देखा. एक यूजर ने लिखा, “कोई भी इंसान लगातार सप्ताह में 60-70 घंटे तक पीक परफॉर्मेंस नहीं दे सकता. यह मानसिक और शारीरिक रूप से नुकसानदेह है.”
दूसरे यूजर ने पूछा, “अगर आप इतने घंटे काम की मांग कर रहे हैं, तो इक्विटी स्ट्रक्चर भी बताइए ताकि यह समझा जा सके कि लोग निर्माण की मानसिकता क्यों अपनाएं.” हालांकि कुछ यूजर्स ने यह भी कहा कि स्टार्टअप की शुरुआत में यह समर्पण जरूरी होता है, पर यह सभी कर्मचारियों के लिए अनिवार्य नहीं होना चाहिए.
मोहन कुमार की बातों ने भारत में वर्क-लाइफ बैलेंस, मानवाधिकार, और स्टार्टअप कल्चर को लेकर फिर से बहस शुरू कर दी है. विशेषज्ञ मानते हैं कि काम का दबाव बढ़ाना नवाचार को नहीं, बल्कि कर्मचारियों की उत्पादकता और मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकता है.