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'जिसके साथ है नारी, वो है सब पर भारी,' कैसे महिला वोटरों ने बदल दी है देश की सियासत?

Woman Voters in India: भारत में महिला मतदाताओं ने बीते कुछ सालों में चुनावों को एक नई दिशा दे दी है. अब महिलाएं अपने मन से फैसला करके वोट डालने के मामले में भी मजबूत हो रही हैं.

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Woman Voters
Courtesy: Social Media

बीते कुछ सालों में तमाम राजनीतिक दल महिला मतदाताओं को लेकर खासा जोर लगा रही हैं. सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी से लेकर कई विपक्षी पार्टियों ने सत्ता में रहते हुए या विपक्षी पार्टी के तौर पर महिला केंद्रित मुद्दों को तरजीह दी है. सत्ता में रहते हुए बीजेपी की सरकार ने महिलाओं के लिए कई योजनाएं लॉन्च की हैं. लखपति दीदी से लेकर उज्ज्वला योजना तक, महिलाओं को बीजेपी कई मुद्दों पर पसंद आती है. बीजेपी को चुनावों में इस फैक्टर का लाभ भी मिलता रहा है.

साल 2014 में भारतीय जनता पार्टी ने पहली बार इतिहास रचा था. कभी 2 सीटों पर सिमटी हुई सियासी पार्टी, देश में प्रचंड बहुमत से आई थी. नरेंद्र मोदी के नाम पर महिला, बुजुर्ग और युवाओं के वोट जमकर पड़े. यह देश में पहली बार हो हुआ था कि जातीय समीकरण ध्वस्त हो गए थे और एकजुट होकर सबने बीजेपी को वोट किया था. 5 साल शासन चला. साल 2019 के चुनाव में बीजेपी और प्रचंड बहुमत से आई. आंकड़ा 300 पार चला गया. अब बीजेपी ने 400 पार का नारा दिया है. कभी सोचा है कि एनडीए को मिल रही अभूतपूर्व बढ़त की वजह क्या है. आइए जानते हैं.

महिलाएं साबित हो रहीं निर्णायक!

भारतीय जनता पार्टी को महिलाओं का जबरदस्त समर्थन मिला. बीजेपी अपने राज्यों में दावा करती रही है कि महिलाओं की सुरक्षा पर उनका जोर है. यूपी जैसे राज्य में जहां लूट और डकैती एक जमाने में बेहद आम रही है. वहां 2017 के चुनाव के बाद तस्वीर बदली. योगी की छवि बेहद कठोर प्रशासक की रही. मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में बीजेपी ने सधे कदमों से सियासी दांव चला और समीकरण बदलते हुए नजर आने लगे.

हिंदुस्तान टाइम्स ने एक्सिस-मायइंडिया के हवाले से लिखा है कि महिलाओं पर बीजेपी के फोकस की वजह से उन्हें चुनावी नतीजों में बढ़त मिली. साल 2022 में उत्तर प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव और 2023 में मध्य प्रदेश में हुए चुनावों में विरोधी पार्टियों की तुलना में बीजेपी को महिला वोटरों का साथ ज्यादा मिला. अब महिलाओं के नाम पर सरकारी योजनाओं की सुविधाएं देना, महिलाओं को घर की मालकिन बनाना जैसे फैसले भी इस दिशा में निर्णायक साबित हो रहे हैं.

महिलाएं खुद ले रही हैं फैसला

रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2014 में 39 प्रतिशत ऐसी थीं जिन्होंने वोट डालने का फैसला अपने परिवार के लोगों की मर्जी से नहीं बल्कि अपनी मर्जी से किया. 1996 के चुनाव में सिर्फ 14 प्रतिशत महिलाएं खुद से फैसला कर पा रही थीं. साल 2021 में हुए एक सर्वे में सामने आया कि 35 प्रतिशत से ज्यादा महिलाओं की राय अपने परिवार के लोगों की रायसे अलग थी.

बीजेपी को हो रहा फायदा?

कई एग्जिट पोल्स और सर्वे में सामने आया है कि महिला मतदाताओं की इस आजादी का फायदा बीजेपी को खूब मिला है. एक्सिस माय इंडिया के सर्वे के मुताबिक, 73 प्रतिशत महिलाओं का झुकाव बीजेपी की ओर था. यहां तक की कांग्रेस की ओर झुकाव रखने वाले परिवारों में भी 25 प्रतिशत महिलाएं ऐसी थीं जिनका झुकाव बीजेपी की ओर था. इसका फायदा बीजेपी को उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में भी मिला और महिलाओं के वोट के चलते वह समाजवादी पार्टी को एक बार फिर हराने में कामयाब हो पाई.

इसे एक और उदाहरण से बेहतर ढंग से समझा जा सकता है. साल 2020 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए को कुल 125 सीटों पर जीत हासिल हुई. इसमें से 99 सीटें ऐसी थीं जहां महिलाओं ने पुरुषों से ज्यादा वोटिंग थी. 2022 में यूपी के विधानसभा चुनाव में भी यही रुझान देखने को मिला.