कोरोना महामारी फैलने के बाद भारत समेत कई देशों में वैक्सीन लगवाई गई थी. अब कुछ सालों के बाद वैक्सीन निर्माता कंपनी एस्ट्राजेनेका के एक कबूलनामे ने पूरी दुनिया में हंगामा मचा दिया है. इस कंपनी ने माना है कि कुछ दुर्लभ मामलों में वैक्सीन लगवाने वाले लोगों को थ्रोम्बोसिस विद थ्रोम्बोसायटोपेनिया सिंड्रोम (TTS) हो सकता है. यानी कुछ जगहों पर खून के थक्के जम सकते हैं. इस कबूलनामे के चलते लोग घबरा गए हैं क्योंकि भारत में कोरोना वैक्सीन के सैकड़ों करोड़ डोज लगवाए गए हैं. दो साल पहले वैक्सीन लगवाने की वजह से ज्यादातर लोग यह भी भूल गए हैं कि आखिर उन्होंने कौनसी वैक्सीन लगवाई थी.
भारत में कोरोना वैक्सीन के 220 करोड़ से ज्यादा डोज लगवाए गए हैं. भारत सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय ने कोरोना वैक्सीन लगवाने के लिए एक पोर्टल COWIN बनवाया था. इस पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन करवाने के बाद ही वैक्सीन लगाई जा रही थी. आंकड़ों के मुताबिक, 111 करोड़ से ज्यादा लोगों ने इस पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन करवाया था. भारत में कुल सात तरह की वैक्सीन उपलब्ध थीं. आमतौर पर लोगों को दो डोज लगवाने थे और बाद में बूस्टर डोज का विकल्प भी दिया गया.
भारत में उपलब्ध रही कुल सात प्रकार की वैक्सीन में सबसे ज्यादा हिस्सा कोविशील्ड का है. कोविशील्ड के बाद दूसरे नंबर पर कोवैक्सीन का है. इसके बाद स्पुतनिक V, कोरबेवैक्स, कोवोवैक्स, iNCOVACC और GEMCOVAC हैं. अब ज्यादातर लोगों को यह याद ही नहीं आ रहा है कि उन्होंने कौन सी वैक्सीन लगवाई थी. सबसे पहले तो आपको यह जानना जरूरी है कि भारत में सबसे ज्यादा लगवाई गई वैक्सीन कोविशील्ड को लेकर सवाल उठे हैं. इसे एस्ट्राजेनेका ने भारत के सीरम इंस्टिट्यूट और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर बनाया था.