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Shibu Soren Family: झारखंड आंदोलन के जननायक का कितना बड़ा है परिवार, जानिए शिबू सोरेन किन-किन अपनों को पीछे छोड़ गए

81 साल की उम्र में शिबू सोरेन का निधन हो गया. वह पत्नी, तीन बेटे, एक बेटी, बहू, पोते-पोतियों सहित भरा परिवार को पीछे छोड़ गए हैं. उनके बेटे हेमंत सोरेन वर्तमान मुख्यमंत्री हैं और बहू कल्पना भी विधायक हैं. सोरेन का जीवन सामाजिक सुधारक से मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री तक का प्रेरणादायक सफर रहा.

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Edited By: Km Jaya
Shibu Soren Family
Courtesy: Social Media

Shibu Soren Family: झारखंड की राजनीति के सबसे प्रभावशाली चेहरों में से एक, पूर्व मुख्यमंत्री और झारखंड मुक्ति मोर्चा यानी JMM के संस्थापक शिबू सोरेन का सोमवार सुबह दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में निधन हो गया. वह 81 वर्ष के थे और लंबे समय से बीमार चल रहे थे. अस्पताल द्वारा जारी मेडिकल बुलेटिन के मुताबिक, उन्हें किडनी की गंभीर बीमारी और हाल ही में स्ट्रोक हुआ था. पिछले एक महीने से वह वेंटिलेटर पर थे.

उनके निधन की पुष्टि उनके बेटे और झारखंड के वर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने सोशल मीडिया पोस्ट के माध्यम से की. शिबू सोरेन के निधन से झारखंड में शोक की लहर दौड़ गई है. उन्हें झारखंड आंदोलन का प्रमुख चेहरा और राज्य की आत्मा कहा जाता है.

परिवार में कौन-कौन हैं?

शिबू सोरेन अपने पीछे पत्नी रूपी सोरेन, तीन बेटे और एक बेटी सहित भरा परिवार छोड़ गए हैं. बड़े बेटे जिनका नाम दुर्गा सोरेन, जो झामुमो के विधायक थे, 2009 में असमय मृत्यु हो गई, इनकी सीता सोरेन, दुमका से विधायक रह चुकी हैं. इनके मंझले बेटे का नाम हेमंत सोरेन, वर्तमान मुख्यमंत्री हैं और हेमंत की पत्नी कल्पना सोरेन, गांडेय से विधायक हैं और शिक्षा व समाजसेवा में सक्रिय हैं. हेमंत-कल्पना के दो बेटे हैं निखिल और अंश. शिबू सोरेन के सबसे छोटे बेटे बसंत सोरेन, झामुमो युवा विंग के अध्यक्ष हैं और राजनीति में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं. बेटी अंजलि सोरेन, सामाजिक कार्यों से जुड़ी रही हैं. 

राजनीतिक जीवन की झलक:

1972: झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन किया.

3 बार मुख्यमंत्री: हालांकि कार्यकाल कभी पूरा नहीं कर पाए.

2 बार केंद्रीय मंत्री: कोयला मंत्रालय जैसे अहम मंत्रालय की जिम्मेदारी संभाली.

8 बार लोकसभा सदस्य: एक जननायक के रूप में उन्होंने लंबी राजनीतिक पारी खेली.

आदिवासी समाज को एक नई पहचान

संथाल समुदाय से आने वाले शिबू सोरेन ने अपने संघर्ष से आदिवासी समाज को एक नई पहचान दी. अलग झारखंड राज्य निर्माण में उनकी भूमिका ऐतिहासिक मानी जाती है.