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Shibu Soren Biography: पिता की मौत बनी प्रेरणा, जानें आदिवासियों की आवाज बने शिबू सोरेन की समाजिक और राजनीतिक जीवन यात्रा

शिबू सोरेन का जीवन संघर्ष, आंदोलन और सत्ता का अनोखा संगम है. उन्होंने समाज सुधारक के रूप में शुरुआत कर आदिवासी अधिकारों के लिए आवाज उठाई और आठ बार सांसद, तीन बार मुख्यमंत्री और दो बार केंद्रीय मंत्री बने. विवादों और विफलताओं के बावजूद उन्होंने जनमानस में गहरी छाप छोड़ी.

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Edited By: Km Jaya
Shibu Soren
Courtesy: Social Media

Shibu Soren Biography: झारखंड की राजनीति में एक अद्वितीय और संघर्षशील व्यक्तित्व के रूप में उभरे दिशोम गुरु शिबू सोरेन की जीवन यात्रा समाज सुधार से शुरू होकर सत्ता के उच्च शिखरों तक पहुंची. 11 जनवरी 1944 को हजारीबाग जो अब रामगढ़ है, वहां के नेमरा गांव में जन्मे शिबू सोरेन ने बचपन में ही अपने पिता को महाजनों की हिंसा में खो दिया. यह घटना उनके जीवन की दिशा तय करने वाली बनी. उन्होंने पढ़ाई छोड़ आदिवासियों को संगठित करना शुरू किया और शिक्षा व अधिकारों के प्रति जागरूकता फैलाने में जुट गए.

उनका सबसे पहला आंदोलन महाजनों के खिलाफ 'धनकटनी आंदोलन' था, जिसने उन्हें एक सामाजिक नेता के रूप में स्थापित कर दिया. यहीं से उन्होंने झारखंड के लिए अलग राज्य की मांग को लेकर आंदोलन शुरू किया और 1973 में झारखंड मुक्ति मोर्चा यानी JMM की स्थापना की.

राजनीतिक सफर:

1980 में वह पहली बार लोकसभा सदस्य चुने गए.

1986 में झामुमो के महासचिव बने.

1989, 1991, 1996 में लगातार लोकसभा के लिए चुने जाते रहे.

1998 से 2002 तक राज्यसभा सदस्य रहे.

2002, 2004, 2009 और 2014 में फिर लोकसभा पहुंचे.

कुल आठ बार लोकसभा सांसद रहे.

मंत्री और मुख्यमंत्री के रूप में भूमिका

2004 में वह केंद्र सरकार में कोयला मंत्री बने लेकिन जुलाई में ही इस्तीफा देना पड़ा.

2005 में पहली बार झारखंड के मुख्यमंत्री बने, पर 10 दिन में पद छोड़ना पड़ा.

2006 में दोबारा केंद्र में कोयला मंत्री बने लेकिन फिर इस्तीफा देना पड़ा.

2009 में तीसरी बार मुख्यमंत्री बने.

कई विवादों में शामिल

उनकी राजनीति में कई विवाद भी शामिल रहे, जिनमें आपराधिक आरोप, जेल जाना और उपचुनाव में हार शामिल हैं. फिर भी वह झारखंड के सबसे प्रभावशाली और स्वीकार्य नेताओं में से एक रहे.