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India Daily

गांव की बेटी ने रचा इतिहास, एवरेस्ट पर चढ़ने वाली बनीं पहली दृष्टिहीन भारतीय

Mount Everest: हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले के हंगरांग घाटी में स्थित एक छोटे से गांव की छोंजिन अंगमो ने इतिहास रच दिया है. वह भारत की पहली दृष्टिहीन महिला बन गई हैं जिसने माउंट एवरेस्ट की चोटी पर तिरंगा फहराया.

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Edited By: Princy Sharma
Chhonzin Angmo Mount Everest
Courtesy: X

Chhonzin Angmo Mount Everest: हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले के हंगरांग घाटी में स्थित एक छोटे से गांव की छोंजिन अंगमो ने इतिहास रच दिया है. वह  भारत की पहली दृष्टिहीन महिला बन गई हैं जिसने माउंट एवरेस्ट की चोटी पर तिरंगा फहराया. वहीं, दुनिया की पांचवी दृष्टिहीन पर्वतारोही बन गईं है. इससे पहले एरिक वाइहेनमेयर (अमेरिका, 2001), आंद्रे होल्जर (ऑस्ट्रिया, 2017), झांग होंग  (चीन, 2021) और लॉनी बेडवेल (अमेरिका, 2023) ने एवरेस्ट को शिखर किया था, लेकिन अंगमो पहली दृष्टिहीन महिला हैं जिन्होंने यह कीर्तिमान स्थापित किया.

अंगमो ने मीडिया से बातचीत करते हुए कहा, 'जब मैंने माउंट एवरेस्ट की चोटी पर कदम रखा, तो मेरा पहला ख्याल यह था कि जीवन में हर कदम मायने रखता है, चाहे आप सामान्य हों या विशेष रूप से सक्षम. यह मेरी यात्रा का सिर्फ एक कदम है और मेरा उद्देश्य विशेष रूप से सक्षम लोगों को प्रेरित करना है कि अगर हमारी इच्छाशक्ति मजबूत हो, तो हमें कोई भी चीज रोक नहीं सकती. मेरा अगला लक्ष्य है, प्रत्येक महाद्वीप के सबसे ऊंचे शिखरों को फतह करना.'

अंगमो ने क्या कहा? 

अंगमो ने बताया कि उनका आदर्श हेलेन केलर हैं, जिनकी किताबों और जीवनी को पढ़कर उन्होंने जीवन के कठिन रास्तों को समझा. वह कहती हैं, 'मेरे पिता और परिवार ने हमेशा मेरा साथ दिया. कई बार लोग मुझे मेरी दृष्टिहीनता के कारण ताना मारते थे, लेकिन मेरे परिवार का समर्थन ही था जिसने मुझे आगे बढ़ने का हौसला दिया.'

'हमारे गांव चांगो में जीवन की...'

अंगमो के पिता अमर चंद(76) जो खुद एक किसान हैं उन्होंने कहा, 'हमारे गांव चांगो में जीवन की तरह हमारी बेटी अंगमो भी एक नायक की तरह है. उसे माउंट एवरेस्ट पर चढ़ते हुए देखना पूरे गांव के लिए एक खास पल था.' छोंजिन अंगमो के दृष्टिहीन होने की शुरुआत तब हुई, जब वह तीसरी कक्षा में थीं. एक दवा की एलर्जी के कारण उनकी आंखों की रोशनी पूरी तरह से चली गई. अंगमो के चाचा गोपाल ने बताया, 'हमें इसका पता तब चला जब स्कूल के टीचर ने ध्यान दिया कि अंगमो लिखने में दिक्कतें महसूस कर रही थीं. हम उसे डॉक्टरों के पास लेकर गए, लेकिन कोई राहत नहीं मिली.' इसके बाद, अंगमो ने अपने परिवार के साथ कई शहरों में इलाज कराया, लेकिन आखिरकार उनकी दृष्टिहीनता पूरी तरह स्थायी हो गई. 

कहां से की पढ़ाई?

इसके बावजूद, अंगमो के परिवार ने उनका साथ कभी नहीं छोड़ा और उन्हें अपनी शिक्षा पूरी करने का पूरा मौका दिया. उन्होंने लेह के महाबोधि स्कूल में दाखिला लिया और फिर दिल्ली के मिरांडा हाउस से ग्रजेुएट की डिग्री हासिल की. 2016 में, अंगमो ने अटल बिहारी वाजपेयी पर्वतारोहण संस्थान से बेसिक पर्वतारोहण पाठ्यक्रम पूरा किया और 5,289 मीटर की फ्रेंडशिप पीक को चढ़ा. इसके बाद, उन्होंने कई और पहाड़ों की चढ़ाई की और ऑपरेशन ब्लू फ्रीडम के तहत सियाचिन ग्लेशियर की यात्रा भी की.

अंगमो के पर्वतारोहण के जुनून को देखते हुए, उन्हें स्कलजंग रिगजिन का मार्गदर्शन मिला, जो माउंट एवरेस्ट को बिना ऑक्सीजन के चढ़ने वाले पहले भारतीय नागरिक हैं. रिगजिन ने कहा, 'अंगमो में एक खास इच्छाशक्ति थी, जो मुझे लगता था कि उसे बड़ी ऊंचाई पर चढ़ने की क्षमता है'.'

अंगमो के इस ऐतिहासिक अभियान को यूनियन बैंक ऑफ इंडिया ने प्रायोजित किया था और इसके लिए उनकी तैयारी बूट्स एंड क्राम्पन्सऔर पायनियर एडवेंचर्स के साथ की गई थी. उन्होंने पहले माउंट लोबुचे (6,119 मीटर) चढ़ा और फिर माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई शुरू की.