नई दिल्ली: वीरों की धरती के नाम से मशहूर राजस्थान में विधानसभा चुनावों का बिगुल बज चुका है और सभी राजनीतिक पार्टियां पॉलिटिकल चेस की बिसात पर अपनी-अपनी चाल चलने को तैयार हैं. इस बीच जहां भारतीय जनता पार्टी ने चुनावी शतरंज की पहली चाल चलते हुए उम्मीदवारों की पहली लिस्ट का ऐलान कर दिया है तो वहीं सत्ताधारी कांग्रेस अभी तक अपनी पहली चाल तय नहीं कर पाई है.
चुनावी सरगर्मियां तेज हो गई हैं लेकिन इसके बावजूद कांग्रेस पार्टी तैयार नजर नहीं आ रही है और अब तक उसने उम्मीदवारों की पहली लिस्ट भी जारी नहीं की है. ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि आखिर क्या वजह है जिसके चलते उम्मीदवारों के नाम पर मुहर नहीं लग पा रही है, क्या पार्टी में सबकुछ ठीक नहीं है या फिर इसकी वजह कुछ और ही है. आज की इस रिपोर्ट में हम इसी मुद्दे की इनसाइड स्टोरी को समझाने जा रहे हैं-
दरअसल चुनावों के ऐलान से पहले ही राज्य की कांग्रेस सरकार में फूट नजर आने लगी थी. जहां सचिन पायलट अपनी ही सरकार के खिलाफ धरना और प्रदर्शन करते नजर आ रहे थे तो वहीं पर अशोक गहलोत भी सचिन पायलट और उनके समर्थकों से खासा नाराज नजर आ रहे थे. इसके चलते एक वक्त ऐसा भी आ गया जब लगा कि शायद कांग्रेस पार्टी दो टुकड़ों में बंट जाएगी लेकिन तभी कांग्रेस आलाकमान ने बीच-बचाव कर दोनों खेमों में सामंजस्य बिठाने का काम किया और दोनों फिर से साथ नजर आने लगे.
हालांकि चुनावी बिगुल बजने के बाद एक बार फिर से ये दरार सामने आ रही है. जहां सचिन पायलट अपने समर्थकों को अधिक से अधिक टिकट देने की दावेदारी पेश कर रहे है तो वहीं सीएम गहलोत इसके पक्ष में नहीं है कि टिकट बटवारे में सचिन को ज्यादा तरजीह दी जाए क्योंकि अगर सूबे में सरकार का गठन होता है तो सचिन पायलट को CM बनाने को लेकर उनके समर्थक विधायकों का मनोवैज्ञानिक दबाव आलाकमान और गहलोत के लिए नया सियासी सरदर्द हो सकता है.
देरी का दूसरा कारण विधानसभा सीट पर दावेदारों की लंबी फेहरिस्त होना भी है जिसके चलते कांग्रेस पार्टी यह देख रही है कि किस उम्मीदवार के साथ जीत हासिल करने की संभावना सबसे ज्यादा है. जीत के पैमाने पर कौन 100 % खरा उतर रहा है. इसको लेकर पार्टी और समय ले रही है. जमीनी स्तर से फीडबैक का सिलसिला अब अंतिम चरण में है. इसके बाद ही 18 तारीख तक सूची जारी होने की उम्मीद जताई जा रही है.
कई जगह सत्ता विरोध लहर पार्टी के खिलाफ जा रहा है. ऐसे में पार्टी काफी सोच विचारकर उम्मीदवार को चुनावी मैदान में उतारना चाहती है. BJP ने तमाम सीटों पर उम्मीदवार उतारकर कांग्रेस के सामने चुनावी चक्रव्यूह की योजना-रचना कर दी है. ऐसे में कांग्रेस पार्टी के सामने चुनौती बीजेपी के खिलाफ हैवीवेट उम्मीदवार उतारने की है.
जातीय समीकरण समेत तमाम चुनावी दांवपेंच को लेकर कांग्रेस में मंथन का सिलसिला लंबा इसलिए खिंच रहा है क्योंकि ये तमाम समीकरण जीत हार का अंतर तय करते है. कांग्रेस पार्टी का मानना है कि टिकटों के बंटवारे में जो समय लग रहा है वो तमाम चीजें सोच कर ही वो उम्मीदवार उतारना चाहती है ताकि पार्टी की झोली में जीत तय हो सके.
पार्टी के अंदर खेमेबाजी और गुटबाजी टिकट फाइनल न हो पाने की बड़ी वजहों में से एक है जिसे पार्टी के चुनावी प्रंबधक और हाईकमान खत्म करने की कोशिश में लगे हैं.सूत्रों का कहना है कि प्रारंभिक सर्वे और नेताओं के फीडबैक में राजस्थान में कई मंत्रियों के साथ विधायकों का प्रदर्शन खराब मिला है. ऐसे में इन नेताओं के टिकट काटने का दबाव पार्टी पर बढ़ रहा है. इस तरह का फैसला लेने से पहले पार्टी हर तरह से संतुष्ट होना चाहती है ताकि बगावत की कोई आवाज न उठे. इसलिए अंतिम रिपोर्ट का इंतजार किया जा रहा है. पार्टी नेताओं का मानना है कि यदि मंत्रियों और विधायकों के टिकट काटे गए तो उनके बागी होने की आशंका भी है. पार्टी इसके लिए तैयार है और कुछ वरिष्ठ नेताओं को टिकट कटने वाले नेताओं को मनाने की जिम्मेदारी दे दी गई है.
दिल्ली में हुई मीटिंग में करीब 125 सीटों के नामों पर चर्चा हुई, लेकिन सहमति 80 सीटों पर ही बनी. इस लिस्ट में तमाम मंत्रीयों और वरिष्ठ नेताओं के नाम शामिल नाम हैं. उनमें ज्यादातर पिछले चुनाव वाले ही प्रत्याशी हैं बाकि 120 सीटों पर पार्टी नए, युवा और महिला चेहरों को आगे लाने की रणनीति अपना सकती है.
इन सबके अलावा पार्टी के लिए सबसे बड़ा सिरदर्द निर्दलीय और बसपा से कांग्रेस में आए विधायक बने हैं जिनके सहारे उसने पिछले पांच साल सरकार बनाकर बिताए हैं. जिन विधायकों राजस्थान में गहलोत सरकार बनाने में मदद की थी, उन सीटों पर कांग्रेस के प्रत्याशी भी दावेदारी ठोंक रहे हैं तो ऐसे में सरकार के लिए यह सबसे बड़ी चुनौती है कि किसी को नाराज किए बिना बीच का रास्ता कैसे तैयार किया जाए.
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