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Electoral Bonds: अगर खुली चुनावी चंदे की पोल तो बजेगा सबका ढोल! जानें पार्टी वाइज किस पर क्या पड़ेगा असर 

Electoral Bonds: सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद एसबीआई ने चुनाव आयोग को आज चुनावी बांड से संबंधित डाटा भेज दिए हैं. इसके बाद अब सवाल है कि बैंक की ओर से भेजे गए डाटा से किस-किस दल का पोल खुलता है. सवाल यह भी है कि पोल खुलने के बाद तमाम राजनीतिक दलों पर इसका क्या असर पड़ेगा?

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Electoral Bonds: सुप्रीम कोर्ट की सख्ती के बाद एसबीआई ने मंगलवार (12 मार्च) शाम को चुनाव आयोग को चुनावी बांड से संबंधित डाटा भेज दिया है. सोमवार को ही सुप्रीम कोर्ट ने एसबीआई को यह आदेश दिया था कि मंगलवार शाम 5 बजे तक डेटा भेजा जाए नहीं तो अवमानना का मामला बनेगा. इसके बाद एसबीआई ने कोई देरी न करते हुए अगले दिन ही चुनाव आयोग को डेटा जमा करा दिया है.

अब चुनाव आयोग के पास 15 मार्च तक का समय है कि वो ये सारा डेटा अपनी वेबसाइट पर सार्वजनिक करे. जहां चुनावी बॉन्ड को लेकर सुप्रीम कोर्ट लगातार सख्त है तो वहीं पर विपक्षी दल भी सरकार पर इसको लेकर घोटाले का आरोप लगा रहे हैं. इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर कांग्रेस आए दिन बीजेपी को आड़े हाथ लेती रही है और इसे सरकार की ओर से किया गया सबसे बड़ा घोटाला बताया है.

किस पार्टी पर क्या असर डालेगा चुनावी चंदे का डेटा

पर यहां गौर करने वाली बात यह है कि चुनावी चंदे का जो डेटा है वो किसी एक पार्टी का नहीं बल्कि सभी राजनीतिक पार्टियों का है. ऐसे में हर पार्टी को इलेक्टोरल बॉन्ड से कुछ न कुछ चंदा जरूर मिला है तो अगर ये डेटा सार्वजनिक हो जाता है तो आइये समझते हैं कि किस पार्टी पर क्या फर्क पड़ेगा.

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स यानी एडीआर की रिपोर्ट के अनुसार पांच साल में इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए राजनीतिक दलों को जितना चंदा मिला है उसका 57 प्रतिशत हिस्सा सीधे तौर पर बीजेपी को गया है. रिपोर्ट के अनुसार 2017 से लेकर 2021 तक इलेक्टोरल बॉन्ड के माध्यम से करीब 9 हजार 188 करोड़ रूपए का चंदा 7 राष्ट्रीय और 24 क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टियों को दिया गया है.

बीजेपी को 57, कांग्रेस को 10 फीसदी चंदा मिला 

एडीआर की रिपोर्ट की मानें तो पांच साल के दौरान इलेक्टोरल बॉन्ड के माध्यम से बीजेपी को 5 हजार 272 करोड़ रुपए और कांग्रेस को दौरान 952 करोड़ रूपए मिले हैं. इसके अलावा अन्य 29 राजनीतिक दलों को करीब 3 हजार करोड़ रूपए का चंदा दिया गया. परसेंटेज के हिसाब से अगर हम देखें तो 5 साल के दौरान इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए बीजेपी को 57 फीसदी तो कांग्रेस को 10 फीसदी चंदा मिला है.

इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए चंदा लेने की सूची में ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी तीसरे नंबर पर रही. टीएमसी को इन पांच सालों में इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए करीब 768 करोड़ रुपए का चंदा मिला है. नवीन पटनायक की पार्टी बीजेडी को करीब 622 करोड़, डीएमके को 432 करोड़, एनसीपी को 51 करोड़, आम आदमी पार्टी को करीब 44 करोड़ और जनता दल यूनाइटेड को 24 करोड़ के आसपास का चंदा मिला है.

साल 2022 के मार्च से लेकर 2023 के मार्च तक की अगर हम बात करें तो इस दौरान 2,800 करोड़ रुपए के इलेक्टोरल बॉन्ड बेचे गए. जिसमें से 46 फीसदी हिस्सा यानी 1,294 करोड़ रुपए के इलेक्टोरल बॉन्ड बीजेपी के खाते में आया और कांग्रेस के खाते में महज 171 करोड़ रुपए आए.

क्या है इलेक्टोरल बॉन्ड 

इलेक्टोरल बॉन्ड एक वित्तीय साधन हैं जिनके जरिए राजनीतिक दलों को चंदा दिया जाता है. इलेक्टोरल बॉन्ड को भारतीय स्टेट बैंक जारी करती है. कोई भी व्यक्ति एसबीआई में जाकर इलेक्टोरल बॉन्ड वाहक के रूप में होते हैं, जिसका अर्थ है कि वे किसी भी व्यक्ति या संगठन द्वारा खरीदे जा सकते हैं और फिर किसी पंजीकृत राजनीतिक दल को दान किए जा सकते हैं. बॉन्ड 1,000 रुपये, 10,000 रुपये, 1,00,000 रुपये और 10,00,000 रुपये के मूल्यवर्ग में उपलब्ध हैं.