हवाई यात्रा को सबसे सुरक्षित माना जाता है, लेकिन यात्रियों के लिए सबसे भयावह क्षण तब आता है जब उड़ान के दौरान विमान अचानक झटकों से हिलने लगता है. यह टर्ब्युलेंस का असर होता है, जो अब जलवायु परिवर्तन के कारण और ज्यादा खतरनाक साबित हो सकता है.
यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग की एक ताज़ा स्टडी बताती है कि जैसे-जैसे धरती का तापमान बढ़ रहा है, वैसे-वैसे आसमान की स्थिरता घट रही है और तेज़ हवाओं की धाराएं यानी जेट स्ट्रीम अधिक अस्थिर हो रही हैं. यही कारण है कि भविष्य में यात्रियों और क्रू को अधिक बार गंभीर टर्ब्युलेंस का सामना करना पड़ सकता है.
स्टडी के अनुसार जलवायु परिवर्तन ने ऊंचाई पर बहने वाली जेट स्ट्रीम की दिशा और रफ्तार को प्रभावित किया है. ये तेज़ हवाएं धरती को घेरे रहती हैं और हवाई जहाज़ों को महाद्वीपों के आर-पार ले जाने में अहम भूमिका निभाती हैं. शोध में पाया गया कि तापमान में बढ़ोतरी से इन हवाओं में 'विंड शीयर' यानी गति का अंतर तेज़ हुआ है, जिससे वायुमंडल अस्थिर होता जा रहा है. यह अस्थिरता टर्ब्युलेंस को जन्म देती है, जो उड़ानों को अचानक हिला देती है.
यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग के पहले के अध्ययनों ने दिखाया था कि 1979 से 2020 के बीच गंभीर टर्ब्युलेंस के मामलों में 55 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. अब नए शोध में बताया गया है कि इस सदी के अंत तक जेट स्ट्रीम की विंड शीयर 16 से 27 प्रतिशत तक बढ़ सकती है और वायुमंडलीय स्थिरता 10 से 20 प्रतिशत तक घट सकती है. यह असर न सिर्फ उत्तरी बल्कि दक्षिणी गोलार्ध पर भी देखने को मिलेगा.
अध्ययन की प्रमुख लेखिका और पीएचडी शोधकर्ता जोआना मेडेरोस का कहना है कि 'तेज़ विंड शीयर और कमजोर वायुमंडलीय स्थिरता का मेल क्लियर-एयर टर्ब्युलेंस (CAT) के लिए आदर्श स्थिति बनाता है.' CAT सबसे खतरनाक इसलिए है क्योंकि यह बिना चेतावनी के आता है और रडार से पकड़ में नहीं आता. तूफानों से होने वाले टर्ब्युलेंस के विपरीत, CAT पायलटों और यात्रियों को तैयार होने का मौका नहीं देता, जिससे चोट लगने की संभावना ज्यादा रहती है.
यह अध्ययन 26 ग्लोबल क्लाइमेट मॉडल पर आधारित है और इसमें पाया गया कि सबसे बड़ा असर लगभग 35,000 फीट की ऊंचाई पर दिखाई देगा, जहां अधिकतर वाणिज्यिक विमान उड़ते हैं. प्रोफेसर पॉल विलियम्स, जो इस रिसर्च के सह-लेखक हैं, कहते हैं 'हम पहले ही देख चुके हैं कि टर्ब्युलेंस ने यात्रियों को गंभीर चोटें पहुंचाई हैं और कभी-कभी मौतें भी हुई हैं. आने वाले दशकों में संभव है कि पायलटों को सीटबेल्ट का साइन अधिक समय तक ऑन रखना पड़े.' यानी भविष्य की हवाई यात्राओं में यात्रियों को पहले से कहीं अधिक झटकों के लिए तैयार रहना होगा.