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India Daily

दिल्ली की हवा में नया जहर, तेजी से बढ़ रही माइक्रोप्लास्टिक कणों की मौजूदगी, स्टडी में हुआ खुलासा

गर्मियों में वयस्कों द्वारा सांस के जरिए माइक्रोप्लास्टिक कणों का सेवन सर्दियों की तुलना में लगभग दोगुना हो जाता है. औसतन, ठंड के महीनों में प्रति दिन 10.7 कणों की तुलना में गर्मियों में यह आंकड़ा 21.1 कणों तक पहुंच जाता है, जो 97% की वृद्धि दर्शाता है.

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Edited By: Sagar Bhardwaj
 presence of microplastic particles in Delhis air is increasing rapidly revealed in study by IITM an
Courtesy: presence of microplastic particles in Delhis air is increasing rapidly revealed in study by IITM and Savitribai Phule

भारतीय शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक ताजा अध्ययन ने दिल्ली में वायु प्रदूषण के एक नए और चिंताजनक पहलू को उजागर किया है. अध्ययन के अनुसार, दिल्ली की हवा में माइक्रोप्लास्टिक कणों की मौजूदगी तेजी से बढ़ रही है, जो तीन प्रमुख पार्टिकुलेट मैटर श्रेणियों- PM10, PM2.5 और PM1 में पाए गए हैं. गर्मियों में वयस्कों द्वारा सांस के जरिए माइक्रोप्लास्टिक कणों का सेवन सर्दियों की तुलना में लगभग दोगुना हो जाता है. औसतन, ठंड के महीनों में प्रति दिन 10.7 कणों की तुलना में गर्मियों में यह आंकड़ा 21.1 कणों तक पहुंच जाता है, जो 97% की वृद्धि दर्शाता है.

 2,087 माइक्रोप्लास्टिक कणों का पता चला

पुणे के भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (IITM) और सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए इस अध्ययन में दिल्ली में गर्मी और सर्दी के महीनों के दौरान कुल 2,087 माइक्रोप्लास्टिक कणों का पता चला. सबसे आम माइक्रोप्लास्टिक प्रकार पॉलीइथाइलीन टेरेफ्थेलेट (PET) है, जो बोतलों, खाद्य पैकेजिंग और कपड़ों में उपयोग होता है और 41% हिस्सेदारी रखता है. इसके बाद पॉलीइथाइलीन (27%), पॉलिएस्टर (18%), पॉलीस्टीरीन (9%) और PVC (5%) हैं. PM10 में औसतन 1.87 माइक्रोप्लास्टिक प्रति घन मीटर, PM2.5 में 0.51 और PM1 में 0.49 माइक्रोप्लास्टिक प्रति घन मीटर पाए गए.

स्वास्थ्य पर बढ़ता खतरा

हालांकि माइक्रोप्लास्टिक सांस लेने की सुरक्षित सीमा अभी तक निर्धारित नहीं की गई है, लेकिन अध्ययन चेतावनी देता है कि इन सूक्ष्म कणों के निरंतर संपर्क से ब्रोंकाइटिस, निमोनिया, फेफड़ों की सूजन और यहां तक कि कैंसर जैसी बीमारियां बढ़ सकती हैं. विशेष रूप से वयस्कों में इन कणों का सेवन अधिक है, क्योंकि उनकी सांस लेने की मात्रा और बाहरी गतिविधियां ज्यादा होती हैं. हालांकि, बच्चों और शिशुओं के लिए यह जोखिम अधिक गंभीर हो सकता है, क्योंकि उनकी श्वसन प्रणाली अभी विकसित हो रही है और उनकी शारीरिक संवेदनशीलता अधिक है.

प्लास्टिक उत्पादन 400.3 मिलियन टन तक पहुंचा

1950 के दशक में 1.5 मिलियन टन से बढ़कर 2022 में प्लास्टिक उत्पादन 400.3 मिलियन टन तक पहुंच गया है. सिंगल-यूज प्लास्टिक के बढ़ते उपयोग और अपर्याप्त कचरा प्रबंधन के कारण माइक्रोप्लास्टिक जमीन और जल दोनों में फैल रहा है. ये सूक्ष्म कण, जो पांच मिलीमीटर से छोटे होते हैं, मरियाना ट्रेंच से लेकर माउंट एवरेस्ट तक, मानव मस्तिष्क, प्लेसेंटा और गहरे समुद्र की मछलियों के पेट में भी पाए गए हैं. हाल ही में फ्रांस की खाद्य सुरक्षा एजेंसी ANSES ने दावा किया कि कांच की बोतलों में प्लास्टिक बोतलों की तुलना में 50 गुना अधिक माइक्रोप्लास्टिक कण पाए गए हैं.