Bombay High Court: बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि पत्नी के कमाने का मतलब यह नहीं कि उसे पति से भरण-पोषण का हक नहीं मिलेगा. कोर्ट ने एक पति की अपील खारिज करते हुए फैमिली कोर्ट के उस आदेश को बरकरार रखा, जिसमें पत्नी को 15,000 रुपये मासिक अंतरिम भरण-पोषण देने का निर्देश दिया गया था. यह फैसला जस्टिस मंजूषा देशपांडे की एकल पीठ ने 18 जून 2025 को सुनाया, जिसकी विस्तृत कॉपी 26 जून को उपलब्ध हुई.
यह मामला ठाणे के एक दंपति से जुड़ा है, जिनकी शादी 28 नवंबर 2012 को हुई थी. पति के अनुसार, पत्नी ने मई 2015 में वैवाहिक घर छोड़ दिया और अपने माता-पिता के साथ रहने लगी. उसने दावा किया कि पत्नी के नखरे और दुर्व्यवहार ने उनके रिश्ते को खराब किया. पत्नी की इच्छा के लिए पति ने नया फ्लैट खरीदा, लेकिन उसका रवैया नहीं बदला. इसके बाद, पति ने बांद्रा के फैमिली कोर्ट में हिंदू विवाह अधिनियम के तहत तलाक की याचिका दायर की. पत्नी ने 29 सितंबर 2021 को अंतरिम भरण-पोषण के लिए आवेदन दिया, जिस पर 24 अगस्त 2023 को फैमिली कोर्ट ने 15,000 रुपये मासिक भरण-पोषण का आदेश दिया.
पति की ओर से वकील शशिपाल शंकर ने तर्क दिया कि पत्नी एक स्कूल में नौकरी करती है और 21,820 रुपये मासिक कमाती है. इसके अलावा, वह ट्यूशन क्लास से सालाना 2 लाख रुपये और सावधि जमा से ब्याज कमाती है. पति ने दावा किया कि पत्नी आर्थिक रूप से स्वतंत्र है, इसलिए उसे भरण-पोषण की जरूरत नहीं.
पत्नी के वकील एसएस दुबे ने तर्क दिया कि पति एक कंपनी में वरिष्ठ प्रबंधक है और उसका वेतन लाखों में है. उसके पास पर्याप्त बचत और संपत्ति है, फिर भी वह पत्नी को उसके कानूनी हक से वंचित कर रहा है. पत्नी की आय सीमित है, और उसे रोजाना काम के लिए लंबी दूरी तय करनी पड़ती है. वह अपने माता-पिता के साथ रहती है, जो लंबे समय तक संभव नहीं.
जस्टिस मंजूषा देशपांडे ने दोनों पक्षों के तर्कों पर गौर किया. कोर्ट ने पाया कि पत्नी की आय खुद का भरण-पोषण करने के लिए अपर्याप्त है. उसे अपने भाई के घर पर माता-पिता के साथ रहना पड़ रहा है, जो सभी के लिए असुविधाजनक है. कोर्ट ने कहा, 'पत्नी की मामूली आय से वह वैसा जीवन स्तर नहीं बनाए रख सकती, जैसा वह वैवाहिक घर में थी.' दूसरी ओर, पति की आय काफी अधिक है, और उस पर कोई वित्तीय जिम्मेदारी नहीं है. कोर्ट ने कहा, 'पत्नी के कमाने का मतलब यह नहीं कि उसे पति से भरण-पोषण नहीं मिलेगा. वह उसी जीवन स्तर की हकदार है, जैसा वह शादी के दौरान थी.'
बॉम्बे हाई कोर्ट ने फैमिली कोर्ट के 15,000 रुपये मासिक भरण-पोषण के आदेश में हस्तक्षेप से इनकार किया. कोर्ट ने कहा कि पति की आय उसे पत्नी का भरण-पोषण करने में सक्षम बनाती है. यह फैसला उन महिलाओं के लिए मिसाल है, जो कमाने के बावजूद अपने वैवाहिक अधिकारों से वंचित की जाती हैं.