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जम्मू-कश्मीर राज्यसभा चुनाव में भाजपा की अप्रत्याशित जीत, क्रॉस वोटिंग पर सियासी हलचल तेज

पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने चुनाव से पहले दावा किया था कि सभी निर्दलीय विधायक नेशनल कॉन्फ्रेंस के समर्थन में हैं. हालांकि, नतीजों ने इस दावे की सच्चाई पर सवालिया निशान लगा दिया है.

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Edited By: Gyanendra Sharma
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Reported By: Raman Saini
Jammu and Kashmir Rajya Sabha
Courtesy: Social Media

जम्मू-कश्मीर में हुए पहले राज्यसभा चुनाव के नतीजों ने सभी राजनीतिक दलों को चौंका दिया है. नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) ने तीन सीटों पर जीत दर्ज की है, जबकि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने चौथी सीट अपने नाम कर ली. आश्चर्य की बात यह है कि विधानसभा में संख्या बल कम होने के बावजूद भाजपा ने यह जीत हासिल की, जिससे अब क्रॉस वोटिंग पर सियासी हलचल बढ़ गई है.

जानकारी के अनुसार, जम्मू-कश्मीर विधानसभा में भाजपा के पास केवल 28 विधायक हैं, यानी अधिकतम 28 वोट की उम्मीद थी. लेकिन चुनाव परिणामों में भाजपा उम्मीदवार सत शर्मा को 32 वोट मिले, जबकि नेशनल कॉन्फ्रेंस के उम्मीदवार को केवल 22 वोट प्राप्त हुए. इन आंकड़ों ने राजनीतिक गलियारों में कई सवाल खड़े कर दिए हैं कि आखिर भाजपा को अतिरिक्त चार वोट कहां से मिले.

पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने चुनाव से पहले दावा किया था कि सभी निर्दलीय विधायक नेशनल कॉन्फ्रेंस के समर्थन में हैं. हालांकि, नतीजों ने इस दावे की सच्चाई पर सवालिया निशान लगा दिया है. राजनीतिक विश्लेषक मान रहे हैं कि यह परिणाम जम्मू-कश्मीर की सियासत में नए समीकरण और संभावित गठबंधनों की शुरुआत का संकेत हो सकता है.

आम आदमी पार्टी विधायक ने साधा निशाना

इसी बीच, कठुआ जेल में पब्लिक सेफ्टी एक्ट (PSA) के तहत बंद आम आदमी पार्टी (AAP) के विधायक महाराज मलिक ने सोशल मीडिया पर तीखा बयान दिया है. उन्होंने नेशनल कॉन्फ्रेंस पर जनता के विश्वास से “खिलवाड़ करने” और “जनता को धोखा देने” का आरोप लगाया है. मलिक ने कहा कि यह चुनाव नतीजा दिखाता है कि “कुछ लोग सत्ता के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं.”

क्रॉस वोटिंग हुई और किसने पार्टी लाइन तोड़ी? 

राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि भाजपा की यह अप्रत्याशित सफलता जम्मू-कश्मीर में भविष्य की राजनीतिक दिशा तय कर सकती है. कई दल अब यह समझने की कोशिश में हैं कि किस स्तर पर क्रॉस वोटिंग हुई और किसने पार्टी लाइन तोड़ी.

राज्यसभा चुनाव के इन नतीजों के बाद प्रदेश की राजनीति में नए गठबंधन, नए समीकरण और नई रणनीतियों की चर्चा जोरों पर है. आने वाले दिनों में इस मुद्दे पर सियासी बयानबाज़ी और आरोप-प्रत्यारोप का दौर और तेज़ होने की संभावना है.